अद्धा असंक्षेप: Difference between revisions
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<span class="GRef">धवला पुस्तक 6/1,9-6,23/167/1</span> <p class="PrakritText">असंखेपद्धात्तिएदेसु आबाधावियप्पेसु देव-णेरइयाणं आउअस्स उक्कस्सणिसेयट्ठिदी संभवदि त्ति उत्तं होदि। </p> | |||
<p class="HindiText">= असंक्षेपाद्धा अर्थात् जिससे छोटा (संक्षिप्त) कोई काल न हो, ऐसे आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक जितने आबाधा के विकल्प होते हैं उनमें देव और नारकियों के, आयु की उत्कृष्ट निषेक स्थिति संभव है।</p><br> | <p class="HindiText">= असंक्षेपाद्धा अर्थात् जिससे छोटा (संक्षिप्त) कोई काल न हो, ऐसे आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक जितने आबाधा के विकल्प होते हैं उनमें देव और नारकियों के, आयु की उत्कृष्ट निषेक स्थिति संभव है।</p><br> | ||
< | <span class="GRef">धवला पुस्तक 14/5,6,645/503/12 </span><p class="PrakritText">जहण्णओ आउअबंधकालो जहण्णविस्समण कालपुरस्सरो असंखेपद्धा णाम। सो जवमज्झचरिमसमयप्पहुडि ताव होदि जाव जहण्णाउअबंधकालचरिमसमओ त्ति। एसा बि असंखेपद्धा तदियति भागम्मि चेव होदि। </p> | ||
<p class="HindiText">= जघन्य विश्रमण काल पूर्वक जघन्य आयुबंध काल असंक्षेपाद्धा कहा जाता है। वह यव मध्य के अंतिम समय से लेकर जघन्य आयु बंध के अंतिम समय तक होता है। यह असंक्षेपाद्धा तृतीय त्रिभाग में ही होता है।</p><br> | <p class="HindiText">= जघन्य विश्रमण काल पूर्वक जघन्य आयुबंध काल असंक्षेपाद्धा कहा जाता है। वह यव मध्य के अंतिम समय से लेकर जघन्य आयु बंध के अंतिम समय तक होता है। यह असंक्षेपाद्धा तृतीय त्रिभाग में ही होता है।</p><br> | ||
<span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड जीव तत्त्व प्रदीपिका/518/913</span> <p class="PrakritText">असंखेपाद्धा भुज्यमानायुषोऽंत्यावल्यसंख्येयभागःतस्मिंनवशिष्टे प्रागेव अंतर्मुहूर्तमात्रसमयप्रबद्धां परभवायुर्नियमेन बद्ध्वा समाप्नोतीति नियमो ज्ञातव्यः। </p> | |||
<p class="HindiText">= `असंक्षेपाद्धा' जो आवली का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण काल भुज्यमान आयु का अवशेष रहै ताकै पहिले अंतर्मुहूर्त काल मात्र | <p class="HindiText">= `असंक्षेपाद्धा' जो आवली का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण काल भुज्यमान आयु का अवशेष रहै ताकै पहिले अंतर्मुहूर्त काल मात्र समयप्रबद्ध निकरि परभव आयु को बाँधि पूर्ण करै है ऐसा नियम जानना।</p><br> | ||
< | <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा 217/1102</span><p class="PrakritText"> .....आउस्स य आबाहा ण ट्ठिदिपडिभागमाउस्स। </p> | ||
<p class="HindiText">= बहुरि नहीं पाइयें है आयु की आबाधा का संक्षेप, घाटि पना जातै ऐसा जो अद्धा काल सो असंक्षेपाद्धा कहिये है।</p> | <p class="HindiText">= बहुरि नहीं पाइयें है आयु की आबाधा का संक्षेप, घाटि पना जातै ऐसा जो अद्धा काल सो असंक्षेपाद्धा कहिये है।</p> | ||
Latest revision as of 15:35, 10 December 2022
धवला पुस्तक 6/1,9-6,23/167/1
असंखेपद्धात्तिएदेसु आबाधावियप्पेसु देव-णेरइयाणं आउअस्स उक्कस्सणिसेयट्ठिदी संभवदि त्ति उत्तं होदि।
= असंक्षेपाद्धा अर्थात् जिससे छोटा (संक्षिप्त) कोई काल न हो, ऐसे आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक जितने आबाधा के विकल्प होते हैं उनमें देव और नारकियों के, आयु की उत्कृष्ट निषेक स्थिति संभव है।
धवला पुस्तक 14/5,6,645/503/12
जहण्णओ आउअबंधकालो जहण्णविस्समण कालपुरस्सरो असंखेपद्धा णाम। सो जवमज्झचरिमसमयप्पहुडि ताव होदि जाव जहण्णाउअबंधकालचरिमसमओ त्ति। एसा बि असंखेपद्धा तदियति भागम्मि चेव होदि।
= जघन्य विश्रमण काल पूर्वक जघन्य आयुबंध काल असंक्षेपाद्धा कहा जाता है। वह यव मध्य के अंतिम समय से लेकर जघन्य आयु बंध के अंतिम समय तक होता है। यह असंक्षेपाद्धा तृतीय त्रिभाग में ही होता है।
गोम्मटसार जीवकांड जीव तत्त्व प्रदीपिका/518/913
असंखेपाद्धा भुज्यमानायुषोऽंत्यावल्यसंख्येयभागःतस्मिंनवशिष्टे प्रागेव अंतर्मुहूर्तमात्रसमयप्रबद्धां परभवायुर्नियमेन बद्ध्वा समाप्नोतीति नियमो ज्ञातव्यः।
= `असंक्षेपाद्धा' जो आवली का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण काल भुज्यमान आयु का अवशेष रहै ताकै पहिले अंतर्मुहूर्त काल मात्र समयप्रबद्ध निकरि परभव आयु को बाँधि पूर्ण करै है ऐसा नियम जानना।
गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा 217/1102
.....आउस्स य आबाहा ण ट्ठिदिपडिभागमाउस्स।
= बहुरि नहीं पाइयें है आयु की आबाधा का संक्षेप, घाटि पना जातै ऐसा जो अद्धा काल सो असंक्षेपाद्धा कहिये है।