अनालोच्य वचन: Difference between revisions
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<span class="GRef">भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 828</span> <p class="PrakritText">तदियं असंतवयणं संतं जं कुणदि अण्णजादीगं। अविचारित्ता गोणं अस्सोत्ति जहेवमादीयं।</p> | |||
<p class="HindiText">= एक जाति के सत्पदार्थ को अन्य जाति का सत्पदार्थ कहना यह असत्य का तीसरा भेद है। जैसे-बैल है उसका विचार न कर यहाँ घोड़ा है ऐसा कहना। यह कहना विपरीत सत् पदार्थ का प्रतिपादन कहने से असत्य है।</p> | |||
<span class="GRef">पुरुषार्थसिद्ध्युपाय श्लोक 94 </span><p class="SanskritText">वस्तु सदपि स्वरूपात् पररूपेणाभिधीयते यस्मिन्। अनृतमिदं च तृतीयं विज्ञेयं गौरिति यथा श्वः॥</p> | |||
<p class="HindiText">= स्व द्रव्यादि चतुष्टय से वस्त सत् होने पर भी पर-चतुष्टय रूप बताना तीसरा अनृत है। जैसे बैल को `घोड़ा है' ऐसा कहना।</p> | |||
<p class="HindiText">- देखें [[ असत्य#3.3 | असत्य- 3.3 ]]।</p> | <p class="HindiText">- देखें [[ असत्य#3.3 | असत्य- 3.3 ]]।</p> | ||
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Latest revision as of 14:33, 16 December 2022
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 828
तदियं असंतवयणं संतं जं कुणदि अण्णजादीगं। अविचारित्ता गोणं अस्सोत्ति जहेवमादीयं।
= एक जाति के सत्पदार्थ को अन्य जाति का सत्पदार्थ कहना यह असत्य का तीसरा भेद है। जैसे-बैल है उसका विचार न कर यहाँ घोड़ा है ऐसा कहना। यह कहना विपरीत सत् पदार्थ का प्रतिपादन कहने से असत्य है।
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय श्लोक 94
वस्तु सदपि स्वरूपात् पररूपेणाभिधीयते यस्मिन्। अनृतमिदं च तृतीयं विज्ञेयं गौरिति यथा श्वः॥
= स्व द्रव्यादि चतुष्टय से वस्त सत् होने पर भी पर-चतुष्टय रूप बताना तीसरा अनृत है। जैसे बैल को `घोड़ा है' ऐसा कहना।
- देखें असत्य- 3.3 ।