अन्ययोगव्यवच्छेद: Difference between revisions
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<p>2. अन्ययोगव्यवच्छेद | <span class="GRef">सप्तभंग तरंंगिनी पृष्ठ 25/1</span> <p class="SanskritText">अयं चैवकारस्त्रिविधः - अयोगव्यवच्छेदबोधकः, अन्ययोगव्यवच्छेदबोधकः, अत्यन्तायोगव्यवच्छेदबोधकश्च इति।</p> | ||
<p> | <p class="HindiText">= यह अवधारण वाचक एवकार तीन प्रकार का है-एक अयोगव्यवच्छेदबोधक, दूसरा अन्ययोगव्यवच्छेदबोधक, और तीसरा अत्यन्तायोगव्यवच्छेद-बोधक।</p> | ||
<span class="GRef"> धवला 11/ </span> <span class="HindiText"> विशेष्य के साथ कहा गया एवकार अन्ययोग का व्यवच्छेद करता है; जैसे-`पार्थ ही धनुर्धर है', अर्थात् अन्य नहीं।</span><br> | |||
<p class="HindiText"> देखें [[ एवकार]]।</p> | |||
<p class="HindiText"><b>2. अन्ययोगव्यवच्छेद नाम का ग्रंथ</b> </p> | |||
<p class="HindiText">श्वेतांबराचार्य श्री हेमचंद्र सूरि (ई.1088-1173) द्वारा रचा गया एक न्यायविषयक ग्रंथ है। इसपर श्री मल्लिषेण सूरि (ई.1292) ने स्याद्वादमंजरी नामकी टीका लिखी है।</p> | |||
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Latest revision as of 17:09, 23 December 2022
1. अन्ययोगव्यवच्छेदात्मक एवकार-
सप्तभंग तरंंगिनी पृष्ठ 25/1
अयं चैवकारस्त्रिविधः - अयोगव्यवच्छेदबोधकः, अन्ययोगव्यवच्छेदबोधकः, अत्यन्तायोगव्यवच्छेदबोधकश्च इति।
= यह अवधारण वाचक एवकार तीन प्रकार का है-एक अयोगव्यवच्छेदबोधक, दूसरा अन्ययोगव्यवच्छेदबोधक, और तीसरा अत्यन्तायोगव्यवच्छेद-बोधक।
धवला 11/ विशेष्य के साथ कहा गया एवकार अन्ययोग का व्यवच्छेद करता है; जैसे-`पार्थ ही धनुर्धर है', अर्थात् अन्य नहीं।
देखें एवकार।
2. अन्ययोगव्यवच्छेद नाम का ग्रंथ
श्वेतांबराचार्य श्री हेमचंद्र सूरि (ई.1088-1173) द्वारा रचा गया एक न्यायविषयक ग्रंथ है। इसपर श्री मल्लिषेण सूरि (ई.1292) ने स्याद्वादमंजरी नामकी टीका लिखी है।