अर्पित: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/32/303</span> <p class="SanskritText">अनेकांतात्मकस्य वस्तुनः प्रयोजनवशाद्यस्य कस्यचिद्धर्मस्य विवक्षया प्रापितं प्राधान्यमर्पितमुपनीतमिति यावत्। तद्विपरीतमनर्पितम्।</p> | |||
<p class="HindiText">= वस्तु अनेकांतात्मक है। | <p class="HindiText">= वस्तु अनेकांतात्मक है। प्रयोजन के अनुसार उसके किसी एक धर्म को विवक्षा से जब प्रधानता प्राप्त होती है तो वह अर्पित या उपनीत कहलाता है। और प्रयोजन के अभाव में जिसकी प्रधानता नहीं रहती वह अनर्पित कहलाता है। नोट-इस शब्द का न्यायविषयक अर्थ योजित है। </p> | ||
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सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/32/303
अनेकांतात्मकस्य वस्तुनः प्रयोजनवशाद्यस्य कस्यचिद्धर्मस्य विवक्षया प्रापितं प्राधान्यमर्पितमुपनीतमिति यावत्। तद्विपरीतमनर्पितम्।
= वस्तु अनेकांतात्मक है। प्रयोजन के अनुसार उसके किसी एक धर्म को विवक्षा से जब प्रधानता प्राप्त होती है तो वह अर्पित या उपनीत कहलाता है। और प्रयोजन के अभाव में जिसकी प्रधानता नहीं रहती वह अनर्पित कहलाता है। नोट-इस शब्द का न्यायविषयक अर्थ योजित है।