अशुद्धता: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: पं. ध/उ. १३० तस्यां सत्यामशुद्धत्वं तद्द्वयोः स्वगुणच्युतिः ।।१३०।।<br>= ...) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(10 intermediate revisions by 5 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">पंचाध्यायी/उतरार्ध 130</span> <p class="SanskritText">तस्यां सत्यामशुद्धत्वं तद्द्वयोः स्वगुणच्युतिः ॥130॥</p> | |||
<p class="HindiText">= उस बंधन रूप पर गुणाकार क्रिया के होने पर जो उन दोनों (जीव तथा कर्मों) का अपने-अपने गुणों से च्युत होना, वह अशुद्धता कहलाती है।</p> | |||
<noinclude> | |||
[[ अशुद्ध निश्चिय नय | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ अशुद्धोपयोग | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: अ]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 10:55, 29 December 2022
पंचाध्यायी/उतरार्ध 130
तस्यां सत्यामशुद्धत्वं तद्द्वयोः स्वगुणच्युतिः ॥130॥
= उस बंधन रूप पर गुणाकार क्रिया के होने पर जो उन दोनों (जीव तथा कर्मों) का अपने-अपने गुणों से च्युत होना, वह अशुद्धता कहलाती है।