अहंकार: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="SanskritText"> | <span class="GRef">तत्त्वानुशासन श्लोक 15 </span><p class="SanskritText">ये कर्मकृताभावा परमार्थनयेन चात्मनोभिन्नाः। तत्रात्माभिनिवेशोऽहंकारोऽहं यथा नृपतिः ॥15॥</p> | ||
<p class="HindiText">= | <p class="HindiText">= कर्मो के द्वारा निर्मित जो पर्यायें हैं और निश्चय नय से आत्मा से भिन्न हैं, उसमें आत्मा का जो मिथ्या आरोप है, उसका नाम अहंकार है जैसे मैं राजा हूँ।</p> | ||
< | <span class="GRef">प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 94/14</span> <p class="SanskritText">मनुष्यादिपर्यायरूपोऽहमित्यहंकारो भण्यते।</p> | ||
<p class="HindiText">= `मनुष्यादि | <p class="HindiText">= `मनुष्यादि पर्याय रूप ही मैं हूँ' ऐसा कहना अहंकार है।</p> | ||
< | <span class="GRef">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 41/169/1</span> <p class="SanskritText">कर्मजनितदेहपुत्रकलत्रादौ ममेदमिति ममकारस्त त्रैवाभेदेन गौरस्थूलादिदेहोऽहं राजाऽहमित्यहंकारलक्षणमिति।</p> | ||
<p class="HindiText">= | <p class="HindiText">= कर्मों से उत्पन्न जो देह, पुत्र, स्त्री आदि में `यह मेरा शरीर है, यह मेरा पुत्र है', इस प्रकार की जो बुद्धि है वह ममकार है, और उन शरीरादि में अपनी आत्मा से अभेद मान कर जो `मैं गौर वर्ण का हूँ, मोटे शरीर वाला हूँ, राजा हूँ' इस प्रकार मानना सो अहंकार का लक्षण है।</p> | ||
Line 15: | Line 15: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 19:13, 30 December 2022
तत्त्वानुशासन श्लोक 15
ये कर्मकृताभावा परमार्थनयेन चात्मनोभिन्नाः। तत्रात्माभिनिवेशोऽहंकारोऽहं यथा नृपतिः ॥15॥
= कर्मो के द्वारा निर्मित जो पर्यायें हैं और निश्चय नय से आत्मा से भिन्न हैं, उसमें आत्मा का जो मिथ्या आरोप है, उसका नाम अहंकार है जैसे मैं राजा हूँ।
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 94/14
मनुष्यादिपर्यायरूपोऽहमित्यहंकारो भण्यते।
= `मनुष्यादि पर्याय रूप ही मैं हूँ' ऐसा कहना अहंकार है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 41/169/1
कर्मजनितदेहपुत्रकलत्रादौ ममेदमिति ममकारस्त त्रैवाभेदेन गौरस्थूलादिदेहोऽहं राजाऽहमित्यहंकारलक्षणमिति।
= कर्मों से उत्पन्न जो देह, पुत्र, स्त्री आदि में `यह मेरा शरीर है, यह मेरा पुत्र है', इस प्रकार की जो बुद्धि है वह ममकार है, और उन शरीरादि में अपनी आत्मा से अभेद मान कर जो `मैं गौर वर्ण का हूँ, मोटे शरीर वाला हूँ, राजा हूँ' इस प्रकार मानना सो अहंकार का लक्षण है।