अंतर्मुहूर्त: Difference between revisions
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<p class="HindiText"><b>1. ''अंतर्मुहूर्त का लक्षण'' (मुहूर्त से कम व आवली से अधिक)</b></p> | |||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 3/1,2,6/67/6</span><p class="PrakritText"> तत्थ एगमावलियं घेत्तूणं असंखेज्जेहि समयेहि एगावलिया होदि त्ति असंखेज्जा समया कायव्वा। तत्थ एगसमए अवणिदे सेसकालपमाणं भिण्णमुहुत्तो उच्चदि। पुणो वि अवरेगे समए अवणिदे सेसकालपमाणमंतोमुहुत्तं होदि। एवं पुणो पुणो समया अवणेयव्वा जाव उस्सासो णिट्ठिदो त्ति। तो वि सेसकालपमाणमंतोमुहुत्तं चेव होइ। एवं सेसुस्सासे वि अवणेयव्वा जावेगावलिया सेसा त्ति। सा आवलिया वि अंतोमुहुत्तमिदि भण्णदि। </p> | |||
<p class="HindiText">= एक आवली को ग्रहण करके असंख्यात समयों से एक आवली होती है, इसलिए उस आवली के असंख्यात समय कर लेने चाहिए। यहाँ मुहूर्त में-से एक समय निकाल लेने पर शेष कालके प्रमाण को भिन्न मुहूर्त कहते हैं। उस भिन्न मुहूर्त में-से एक समय और निकाल लेने पर शेष काल का प्रमाण अंतर्मुहूर्त होता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक समय कम करते हुए उच्छ्वास के उत्पन्न होने तक एक-एक समय निकालते जाना चाहिए। वह सब एक-एक समय कम किया हुआ काल भी अंतर्मुहूर्त प्रमाण होता है। इसी प्रकार जबतक आवली उत्पन्न नहीं होती तबतक शेष रहे एक उच्छ्वास में-से भी एक-एक समय कम करते जाना चाहिए, ऐसा करते हुए जो आवली उत्पन्न होती है उसे भी अंतर्मुहूर्त कहते हैं। </p> | |||
<p class="HindiText">( चारित्तपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 17/41/5)।</p> | |||
<p class="HindiText"><b>2. ''मुहूर्त के समीप या लगभग''</b></p> | |||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 3/1,2,6/69/5</span><p class="PrakritText"> उवसमसम्माइट्ठीणवहारकालो पुण असंखेज्जावलिमेत्तो, खइयसम्माइट्ठीहिंतो तेसिं असंखेज्जगुणहीणत्तण्णहाणुववत्तीदो। सासणसम्माट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठीणं पि अवहारकालोअसंखेज्जावलियमेत्तो, उवसमसम्माइट्ठीहिंतो तेसिमसंखेज्जगुणहीणत्तण्णहाणुववत्तीदो। `एदेहिं पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण कालेण' इति सुत्तेण सह विरोहो वि ण होदि। सामीप्यार्थे वर्तमानांतःशब्दग्रहणात्। मुहूर्तस्यांतः अंतर्मुहूर्तः। </p> | |||
<p class="HindiText">= उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों का अवहार काल तो असंख्यात आवली प्रमाण है, अन्यथा उपशम सम्यग्दृष्टि जीव क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में असंख्यातगुणे हीन बन नहीं सकते हैं। उसी प्रकार सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों का भी अवहारकाल असंख्यात आवली प्रमाण है, अन्यथा उपशम सम्यग्दृष्टियों से उक्त दोनों गुणस्थान वाले जीव असंख्यातगुणा हीन बन नहीं सकते हैं। `इन गुणस्थानों में-से प्रत्येक गुणस्थान की अपेक्षा अंतर्मुहूर्त प्रमाणकाल पल्योपम अपहृत होता है।' इस पूर्वोक्त सूत्र के साथ उक्त कथन का विरोध भी नहीं आता है, क्योंकि अंतर्मुहूर्त में जो अंतर शब्द आया है उसका सामीप्य अर्थ में ग्रहण किया गया है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि जो मुहूर्त के समीप हो उसे अंतर्मुहूर्त कहते हैं। इस अंतर्मुहूर्त का अभिप्राय मुहूर्त से अधिक भी हो सकता है।</p> | |||
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Latest revision as of 18:47, 7 January 2023
1. अंतर्मुहूर्त का लक्षण (मुहूर्त से कम व आवली से अधिक)
धवला पुस्तक 3/1,2,6/67/6
तत्थ एगमावलियं घेत्तूणं असंखेज्जेहि समयेहि एगावलिया होदि त्ति असंखेज्जा समया कायव्वा। तत्थ एगसमए अवणिदे सेसकालपमाणं भिण्णमुहुत्तो उच्चदि। पुणो वि अवरेगे समए अवणिदे सेसकालपमाणमंतोमुहुत्तं होदि। एवं पुणो पुणो समया अवणेयव्वा जाव उस्सासो णिट्ठिदो त्ति। तो वि सेसकालपमाणमंतोमुहुत्तं चेव होइ। एवं सेसुस्सासे वि अवणेयव्वा जावेगावलिया सेसा त्ति। सा आवलिया वि अंतोमुहुत्तमिदि भण्णदि।
= एक आवली को ग्रहण करके असंख्यात समयों से एक आवली होती है, इसलिए उस आवली के असंख्यात समय कर लेने चाहिए। यहाँ मुहूर्त में-से एक समय निकाल लेने पर शेष कालके प्रमाण को भिन्न मुहूर्त कहते हैं। उस भिन्न मुहूर्त में-से एक समय और निकाल लेने पर शेष काल का प्रमाण अंतर्मुहूर्त होता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक समय कम करते हुए उच्छ्वास के उत्पन्न होने तक एक-एक समय निकालते जाना चाहिए। वह सब एक-एक समय कम किया हुआ काल भी अंतर्मुहूर्त प्रमाण होता है। इसी प्रकार जबतक आवली उत्पन्न नहीं होती तबतक शेष रहे एक उच्छ्वास में-से भी एक-एक समय कम करते जाना चाहिए, ऐसा करते हुए जो आवली उत्पन्न होती है उसे भी अंतर्मुहूर्त कहते हैं।
( चारित्तपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 17/41/5)।
2. मुहूर्त के समीप या लगभग
धवला पुस्तक 3/1,2,6/69/5
उवसमसम्माइट्ठीणवहारकालो पुण असंखेज्जावलिमेत्तो, खइयसम्माइट्ठीहिंतो तेसिं असंखेज्जगुणहीणत्तण्णहाणुववत्तीदो। सासणसम्माट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठीणं पि अवहारकालोअसंखेज्जावलियमेत्तो, उवसमसम्माइट्ठीहिंतो तेसिमसंखेज्जगुणहीणत्तण्णहाणुववत्तीदो। `एदेहिं पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण कालेण' इति सुत्तेण सह विरोहो वि ण होदि। सामीप्यार्थे वर्तमानांतःशब्दग्रहणात्। मुहूर्तस्यांतः अंतर्मुहूर्तः।
= उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों का अवहार काल तो असंख्यात आवली प्रमाण है, अन्यथा उपशम सम्यग्दृष्टि जीव क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में असंख्यातगुणे हीन बन नहीं सकते हैं। उसी प्रकार सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों का भी अवहारकाल असंख्यात आवली प्रमाण है, अन्यथा उपशम सम्यग्दृष्टियों से उक्त दोनों गुणस्थान वाले जीव असंख्यातगुणा हीन बन नहीं सकते हैं। `इन गुणस्थानों में-से प्रत्येक गुणस्थान की अपेक्षा अंतर्मुहूर्त प्रमाणकाल पल्योपम अपहृत होता है।' इस पूर्वोक्त सूत्र के साथ उक्त कथन का विरोध भी नहीं आता है, क्योंकि अंतर्मुहूर्त में जो अंतर शब्द आया है उसका सामीप्य अर्थ में ग्रहण किया गया है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि जो मुहूर्त के समीप हो उसे अंतर्मुहूर्त कहते हैं। इस अंतर्मुहूर्त का अभिप्राय मुहूर्त से अधिक भी हो सकता है।