उत्सर्ग तप: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/19/598/6 </span><span class="SanskritText">स्यान्मतम्-वक्ष्यते तपोऽभ्यंतरं षड्विधम्, तत्रोत्सर्गलक्षणेन तपसाग्रहणमस्य सिद्धमित्य-नर्थकं त्यागग्रहणमिति; तन्न; किं कारणम्। तस्यान्यार्थत्वात्। तद्धि नियतकालं सर्वोत्सर्गलक्षणम्, अयं पुनस्त्यागः यथा–शक्ति अनियतकालः क्रियते इत्यस्ति भेदः। </span>=<span class="HindiText"><strong> प्रश्न–</strong>छह प्रकार के अभ्यंतर तप में '''उत्सर्ग लक्षण वाले तप''' का ग्रहण किया गया है, अतः यहाँ दस धर्मों के प्रकरण में त्यागधर्म का ग्रहण निरर्थक है? <strong>उत्तर–</strong>नहीं, क्योंकि, वहाँ तप के प्रकरण में तो नियतकाल के लिए सर्वत्याग किया जाता है और त्याग धर्म में अनियतकाल के लिए यथाशक्ति त्याग किया जाता है। </span><br /> | |||
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राजवार्तिक/9/6/19/598/6 स्यान्मतम्-वक्ष्यते तपोऽभ्यंतरं षड्विधम्, तत्रोत्सर्गलक्षणेन तपसाग्रहणमस्य सिद्धमित्य-नर्थकं त्यागग्रहणमिति; तन्न; किं कारणम्। तस्यान्यार्थत्वात्। तद्धि नियतकालं सर्वोत्सर्गलक्षणम्, अयं पुनस्त्यागः यथा–शक्ति अनियतकालः क्रियते इत्यस्ति भेदः। = प्रश्न–छह प्रकार के अभ्यंतर तप में उत्सर्ग लक्षण वाले तप का ग्रहण किया गया है, अतः यहाँ दस धर्मों के प्रकरण में त्यागधर्म का ग्रहण निरर्थक है? उत्तर–नहीं, क्योंकि, वहाँ तप के प्रकरण में तो नियतकाल के लिए सर्वत्याग किया जाता है और त्याग धर्म में अनियतकाल के लिए यथाशक्ति त्याग किया जाता है।
देखें व्युत्सर्ग - 2।