उत्सर्ग मार्ग: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p>देखें [[ अपवाद ]]।</p> | <span class="GRef">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 222 </span><p class="SanskritText">आत्मद्रव्यस्य द्वितीयपुद्गलद्रव्याभावात्सर्व एवोपधिः प्रतिषिद्ध इत्युत्सर्गः।</p> | ||
<p class="HindiText">= '''उत्सर्ग मार्ग''' वह है जिसमें कि सर्व परिग्रह का त्याग किया जाये, क्योंकि आत्मा के एक अपने भाव के सिवाय परद्रव्य रूप दूसरा पुद्गलभाव नहीं है। इस कारण उत्सर्ग मार्ग परिग्रह रहित है।</p> | |||
<span class="GRef">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 230</span> <p class="SanskritText">बालवृद्धश्रांतग्लानेनापि संयमस्य शुद्धात्मसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदो न यथा स्यात्तथा संयतस्य स्वस्य योग्यमतिकर्कशमाचरणीयमित्युत्सर्गः।</p> | |||
<p class="HindiText">= बाल, वृद्ध, श्रमित या ग्लान (रोगी श्रमण) को भी संयम का जो कि शुद्धात्म तत्त्व का साधन होने से मूलभूत है, उसका छेद जैसे न हो उस प्रकार संयत को अपने योग्य अति कर्कश आचरण ही आचरना; इस प्रकार '''उत्सर्ग''' है।</p> | |||
<p>देखें [[ अपवाद ]]।</p> | |||
Line 9: | Line 14: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: उ]] | [[Category: उ]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 13:22, 21 January 2023
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 222
आत्मद्रव्यस्य द्वितीयपुद्गलद्रव्याभावात्सर्व एवोपधिः प्रतिषिद्ध इत्युत्सर्गः।
= उत्सर्ग मार्ग वह है जिसमें कि सर्व परिग्रह का त्याग किया जाये, क्योंकि आत्मा के एक अपने भाव के सिवाय परद्रव्य रूप दूसरा पुद्गलभाव नहीं है। इस कारण उत्सर्ग मार्ग परिग्रह रहित है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 230
बालवृद्धश्रांतग्लानेनापि संयमस्य शुद्धात्मसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदो न यथा स्यात्तथा संयतस्य स्वस्य योग्यमतिकर्कशमाचरणीयमित्युत्सर्गः।
= बाल, वृद्ध, श्रमित या ग्लान (रोगी श्रमण) को भी संयम का जो कि शुद्धात्म तत्त्व का साधन होने से मूलभूत है, उसका छेद जैसे न हो उस प्रकार संयत को अपने योग्य अति कर्कश आचरण ही आचरना; इस प्रकार उत्सर्ग है।
देखें अपवाद ।