वीतराग सम्यग्दर्शन: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/2/10/2 </span><span class="SanskritText">तद् द्विविधं, सरागवीतरागविषयभेदात् ।’’ प्रशमसंवेगानुकंपास्तिक्याद्यभिव्यक्तिलक्षणं प्रथमम् । आत्मविशुद्धिमात्रमितरत् ।</span> =<span class="HindiText">सम्यग्दर्शन दो प्रकार का है - सराग सम्यग्दर्शन और '''वीतराग सम्यग्दर्शन'''। प्रशम, संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य आदि की अभिव्यक्ति लक्षण वाला सराग सम्यग्दर्शन है और आत्मा की विशुद्धि मात्र '''वीतराग सम्यग्दर्शन''' है। ।</span></p> | |||
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Latest revision as of 15:22, 31 January 2023
सर्वार्थसिद्धि/1/2/10/2 तद् द्विविधं, सरागवीतरागविषयभेदात् ।’’ प्रशमसंवेगानुकंपास्तिक्याद्यभिव्यक्तिलक्षणं प्रथमम् । आत्मविशुद्धिमात्रमितरत् । =सम्यग्दर्शन दो प्रकार का है - सराग सम्यग्दर्शन और वीतराग सम्यग्दर्शन। प्रशम, संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य आदि की अभिव्यक्ति लक्षण वाला सराग सम्यग्दर्शन है और आत्मा की विशुद्धि मात्र वीतराग सम्यग्दर्शन है। ।
देखें सम्यग्दर्शन - II.4।