करणलब्धि: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 6/1,9-8,3/गाथा 1/205 </span> <span class="PrakritText">चत्तारि वि (तद्धि) सामण्णं करणं पुण होइ सम्मत्ते।1।</span> =<span class="HindiText">इन (पाँचों) में से ही पहली चार तो सामान्य हैं अर्थात् भव्य-अभव्य दोनों के होती है। किंतु '''करणलब्धि''' सम्यक्त्व होने के समय होती है। </span> | |||
<span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/651/1100/9 </span><span class="SanskritText">करणलब्धिस्तु भव्य एवं स्यात् तथापि सम्यक्त्वग्रहणे चारित्रग्रहणे च।</span> = <span class="HindiText">'''कारणलब्धि''' भव्य जीव के ही सम्यक्त्व ग्रहण वा चारित्र ग्रहण के काल में ही होती है। अर्थात् '''करणलब्धि''' की प्राप्ति के पीछे सम्यक्त्व चारित्र अवश्य ही है। </span> | |||
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धवला 6/1,9-8,3/गाथा 1/205 चत्तारि वि (तद्धि) सामण्णं करणं पुण होइ सम्मत्ते।1। =इन (पाँचों) में से ही पहली चार तो सामान्य हैं अर्थात् भव्य-अभव्य दोनों के होती है। किंतु करणलब्धि सम्यक्त्व होने के समय होती है। गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/651/1100/9 करणलब्धिस्तु भव्य एवं स्यात् तथापि सम्यक्त्वग्रहणे चारित्रग्रहणे च। = कारणलब्धि भव्य जीव के ही सम्यक्त्व ग्रहण वा चारित्र ग्रहण के काल में ही होती है। अर्थात् करणलब्धि की प्राप्ति के पीछे सम्यक्त्व चारित्र अवश्य ही है।
देखें लब्धि - 4।