कर्मबंध: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> सुकृत (पुण्य) और विकृत (पाप) के भेद से द्विविध । इनमें सुकृत | <span class="HindiText"> सुकृत (पुण्य) और विकृत (पाप) के भेद से द्विविध । इनमें सुकृत महापुराण तथा विकृत कटु फलदायी होते हैं । सुकृतबंध का उत्कृष्टतम फल सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न होना और विकृतबंध का निकृष्टतम फल सातवें नरक में उत्पन्न होना है । इनमें सुकृतबंध का फल शम, दम, यम और योग से प्राप्त होता है तथा विकृतबंध का फल शम, दम, यम और योग के अभाव से मिलता है । ये दोनों जीव के अपने कर्मबंध के अनुसार होते हैं । इससे जीव दुःखी होता है । यह बंध राग और द्वेष से आत्मा के दूषित होने पर होता है और बड़ी कठिनाई से हटता है । इसके कारण ही यह जीव दुर्गतियों में अतिशय निंदनीय दुःख पाता हे । <span class="GRef"> महापुराण 11.207-208,219-220</span></span> | ||
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सुकृत (पुण्य) और विकृत (पाप) के भेद से द्विविध । इनमें सुकृत महापुराण तथा विकृत कटु फलदायी होते हैं । सुकृतबंध का उत्कृष्टतम फल सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न होना और विकृतबंध का निकृष्टतम फल सातवें नरक में उत्पन्न होना है । इनमें सुकृतबंध का फल शम, दम, यम और योग से प्राप्त होता है तथा विकृतबंध का फल शम, दम, यम और योग के अभाव से मिलता है । ये दोनों जीव के अपने कर्मबंध के अनुसार होते हैं । इससे जीव दुःखी होता है । यह बंध राग और द्वेष से आत्मा के दूषित होने पर होता है और बड़ी कठिनाई से हटता है । इसके कारण ही यह जीव दुर्गतियों में अतिशय निंदनीय दुःख पाता हे । महापुराण 11.207-208,219-220