असम्यक् वचनोदाहरण: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef"> न्यायदीपिका/3/65/105/12 </span><span class="SanskritText">तत्राद्यं यथा, यो योऽग्निमान् स स धूमवान्, यथा महानस इति, यत्र यत्र धूमो नास्ति तत्र तत्राग्निर्नास्ति, यथा महाहृद इति च व्याप्यव्यापकयोर्वैपरीत्येन कथनम् ।</span><br /> | |||
=<span class="HindiText">उनमें पहले का उदाहरण इस प्रकार है—जो जो अग्निवाला होता है वह-वह धूमवाला होता है, जैसे रसोईघर। जहाँ-जहाँ धूम नहीं है वहाँ-वहाँ अग्नि नहीं है जैसे–तालाब। इस तरह व्याप्य और व्यापक का विपरीत (उलटा) कथन करना दृष्टांत का असम्यग्वचन है। <br/> | =<span class="HindiText">उनमें पहले का उदाहरण इस प्रकार है—जो जो अग्निवाला होता है वह-वह धूमवाला होता है, जैसे रसोईघर। जहाँ-जहाँ धूम नहीं है वहाँ-वहाँ अग्नि नहीं है जैसे–तालाब। इस तरह व्याप्य और व्यापक का विपरीत (उलटा) कथन करना दृष्टांत का असम्यग्वचन है। <br/> | ||
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Latest revision as of 18:43, 17 February 2023
न्यायदीपिका/3/65/105/12 तत्राद्यं यथा, यो योऽग्निमान् स स धूमवान्, यथा महानस इति, यत्र यत्र धूमो नास्ति तत्र तत्राग्निर्नास्ति, यथा महाहृद इति च व्याप्यव्यापकयोर्वैपरीत्येन कथनम् ।
=उनमें पहले का उदाहरण इस प्रकार है—जो जो अग्निवाला होता है वह-वह धूमवाला होता है, जैसे रसोईघर। जहाँ-जहाँ धूम नहीं है वहाँ-वहाँ अग्नि नहीं है जैसे–तालाब। इस तरह व्याप्य और व्यापक का विपरीत (उलटा) कथन करना दृष्टांत का असम्यग्वचन है।
उदाहरण के सम्बन्ध में विशेष जानकारी के लिए देखें दृष्टांत