कायबल ऋद्धि: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> | <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०६५-१०६६</span><p class="PrakritText">उक्कस्सखउसमे पविसेसे विरियविग्धपगढीए। मासचउमासपमुहे काउसग्गे वि समहीणा ।१०६५। उच्चट्ठिय तेल्लोक्कं झत्ति कणिट्ठंगुलीए अण्णत्थं। घविदं जीए समत्था सा रिद्धी कायबलणामा ।१०६६। </p> <p class="HindiText">= जिस ऋद्धि के बल से वीर्यान्तराय प्रकृति के उत्कृष्ट क्षयोपशम की विशेषता होने पर मुनि, मास व चतुर्मासादि रूप कायोत्सर्ग को करते हुए भी श्रम से रहित होते हैं, तथा शीघ्रता से तीनों लोकों को कनिष्ठ अँगुलीके ऊपर उठाकर अन्यत्र स्थापित करनेके लिए समर्थ होते हैं, वह `कायबल' नामक ऋद्धि है ।१०६५-१०६६।</p> | ||
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Latest revision as of 13:50, 27 February 2023
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०६५-१०६६
उक्कस्सखउसमे पविसेसे विरियविग्धपगढीए। मासचउमासपमुहे काउसग्गे वि समहीणा ।१०६५। उच्चट्ठिय तेल्लोक्कं झत्ति कणिट्ठंगुलीए अण्णत्थं। घविदं जीए समत्था सा रिद्धी कायबलणामा ।१०६६।
= जिस ऋद्धि के बल से वीर्यान्तराय प्रकृति के उत्कृष्ट क्षयोपशम की विशेषता होने पर मुनि, मास व चतुर्मासादि रूप कायोत्सर्ग को करते हुए भी श्रम से रहित होते हैं, तथा शीघ्रता से तीनों लोकों को कनिष्ठ अँगुलीके ऊपर उठाकर अन्यत्र स्थापित करनेके लिए समर्थ होते हैं, वह `कायबल' नामक ऋद्धि है ।१०६५-१०६६।
विस्तार के लिये देखें ऋद्धि - 6।