आनुपूर्वी संक्रमण: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> लब्धिसार/जीव तत्त्व प्रदीपिका/249/305/1 </span><span class="SanskritText"> स्त्रीनपुंसकवेदप्रकृत्योर्द्रव्यं नियमेन पुंवेद एव संक्रामति। पुंवेदहास्यादिषण्णोकषायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानक्रोधद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनक्रोध एव संक्रामति। संज्वलनक्रोधाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानमानद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनमाने एव संक्रामति संज्वलनमायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानलोभद्वयद्रव्यंसंज्वलन लोभे एव नियमत: संक्रामति इत्यानुपूर्व्या संक्रमो। | <p><span class="GRef"> लब्धिसार/जीव तत्त्व प्रदीपिका/249/305/1 </span><span class="SanskritText"> स्त्रीनपुंसकवेदप्रकृत्योर्द्रव्यं नियमेन पुंवेद एव संक्रामति। पुंवेदहास्यादिषण्णोकषायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानक्रोधद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनक्रोध एव संक्रामति। संज्वलनक्रोधाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानमानद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनमाने एव संक्रामति संज्वलनमायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानलोभद्वयद्रव्यंसंज्वलन लोभे एव नियमत: संक्रामति इत्यानुपूर्व्या संक्रमो। | ||
</span> = <span class="HindiText">जो स्त्री, नपुंसक वेद प्रकृति के द्रव्य को तो पुरुषवेद में ही संक्रमण करता है। और पुरुष, हास्यादि छह, तथा अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान क्रोध का संज्वलन क्रोध में, संज्वलन क्रोध, अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान मान का संज्वलन मान ही संक्रमण करता है। और संज्वलन मान व अप्रत्याख्यान | </span> = <span class="HindiText">जो स्त्री, नपुंसक वेद प्रकृति के द्रव्य को तो पुरुषवेद में ही संक्रमण करता है। और पुरुष, हास्यादि छह, तथा अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान क्रोध का संज्वलन क्रोध में, संज्वलन क्रोध, अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान मान का संज्वलन मान ही संक्रमण करता है। और संज्वलन मान व अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान माया का संज्वलन माया में ही संक्रमण करता है। संज्वलन माया अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान लोभ का संज्वलन लोभ ही में नियम से संक्रमण होता है, अन्यथा नहीं होता है, यह '''आनुपूर्वी संक्रमण''' है।</span></p> | ||
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Latest revision as of 12:12, 7 March 2023
आनुपूर्वी संक्रमण का लक्षण
लब्धिसार/जीव तत्त्व प्रदीपिका/249/305/1 स्त्रीनपुंसकवेदप्रकृत्योर्द्रव्यं नियमेन पुंवेद एव संक्रामति। पुंवेदहास्यादिषण्णोकषायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानक्रोधद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनक्रोध एव संक्रामति। संज्वलनक्रोधाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानमानद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनमाने एव संक्रामति संज्वलनमायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानलोभद्वयद्रव्यंसंज्वलन लोभे एव नियमत: संक्रामति इत्यानुपूर्व्या संक्रमो। = जो स्त्री, नपुंसक वेद प्रकृति के द्रव्य को तो पुरुषवेद में ही संक्रमण करता है। और पुरुष, हास्यादि छह, तथा अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान क्रोध का संज्वलन क्रोध में, संज्वलन क्रोध, अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान मान का संज्वलन मान ही संक्रमण करता है। और संज्वलन मान व अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान माया का संज्वलन माया में ही संक्रमण करता है। संज्वलन माया अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान लोभ का संज्वलन लोभ ही में नियम से संक्रमण होता है, अन्यथा नहीं होता है, यह आनुपूर्वी संक्रमण है।
संक्रमण के सम्बन्ध में विशेष जानने हेतु देखें संक्रमण - 10।