कटु: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> कटु संभाषण की कथंचित् इष्टता-अनिष्टता–देखें [[ सत्य# | <span class="GRef"> कुरल काव्य/13/8,9 </span><span class="SanskritText">एकमेव पदं वाण्यामस्ति चेन्मर्मघातकम् । विनष्टास्तर्हि विज्ञेया उपकारा: पुराकृता:।8। दग्धमंगं पुन: साधु जायते कालपाकत:। कालपाकत:। कालपाकमपि प्राप्य न प्ररोहति वावक्षतम् ।9।</p> | ||
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<span class="HindiText"> कटु संभाषण की कथंचित् इष्टता-अनिष्टता–देखें [[ सत्य#8.2 | सत्य -8.2 ]]। | |||
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कुरल काव्य/13/8,9
एकमेव पदं वाण्यामस्ति चेन्मर्मघातकम् । विनष्टास्तर्हि विज्ञेया उपकारा: पुराकृता:।8। दग्धमंगं पुन: साधु जायते कालपाकत:। कालपाकत:। कालपाकमपि प्राप्य न प्ररोहति वावक्षतम् ।9।कुरल काव्य/14/9 विद्याविनयसंपन्न: शालीनो गुणवान् नर:। प्रमादादपि दुर्वाक्यं न ब्रूते हि कदाचन।9। =यदि तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को कष्ट पहुँचता है तो तुम अपनी सब भलाई नष्ट हुई समझो ।8। आग का जला हुआ तो समय पाकर अच्छा हो जाता है, पर वचन का घाव सदा हरा बना रहता है ।9। अवाच्य तथा अपशब्द, भूलकर भी संयमी पुरुष के मुख से नहीं निकलेंगे।
कटु संभाषण की कथंचित् इष्टता-अनिष्टता–देखें सत्य -8.2 ।