परिकर्म टीका: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> इन्द्रनन्दी कृत श्रुतावतार के कथनानुसार आचार्य कुन्दकुन्द ने षट्खण्डागम के आद्य 5 खण्डों पर 12000 श्लोक प्रमाण इस नाम की एक टीका रची थी ।264। धवला टीका में इसके उद्धरण प्रायः ‘जीवस्थान’ नामक प्रथम खण्ड के द्वितीय अधिकार ‘द्रव्य प्रमाणानुगम’ में आते हैं, जिस पर से यह अनुमान होता है कि इस टीका में जीवों की संख्या का प्रतिपादन बहुलता के साथ किया गया है । धवलाकार ने कई स्थानों पर ‘परिकर्म सूत्र’ कहकर इस टीका का ही उल्लेख किया है, ऐसा प्रतीत होता है ।268। आचार्य कुन्दकुन्द की समयसार आदि अन्य रचनाओं की भाँति यह ग्रन्थ गाथाबद्ध नहीं है, तदपि प्राकृत भाषाबद्ध अवश्य है । पण्डित कैलाशचन्द इसे आचार्य कुन्दकुन्द कृत मानते हैं । (जै./1/पृष्ठ संख्या) । </span> | |||
Latest revision as of 12:39, 9 March 2023
इन्द्रनन्दी कृत श्रुतावतार के कथनानुसार आचार्य कुन्दकुन्द ने षट्खण्डागम के आद्य 5 खण्डों पर 12000 श्लोक प्रमाण इस नाम की एक टीका रची थी ।264। धवला टीका में इसके उद्धरण प्रायः ‘जीवस्थान’ नामक प्रथम खण्ड के द्वितीय अधिकार ‘द्रव्य प्रमाणानुगम’ में आते हैं, जिस पर से यह अनुमान होता है कि इस टीका में जीवों की संख्या का प्रतिपादन बहुलता के साथ किया गया है । धवलाकार ने कई स्थानों पर ‘परिकर्म सूत्र’ कहकर इस टीका का ही उल्लेख किया है, ऐसा प्रतीत होता है ।268। आचार्य कुन्दकुन्द की समयसार आदि अन्य रचनाओं की भाँति यह ग्रन्थ गाथाबद्ध नहीं है, तदपि प्राकृत भाषाबद्ध अवश्य है । पण्डित कैलाशचन्द इसे आचार्य कुन्दकुन्द कृत मानते हैं । (जै./1/पृष्ठ संख्या) ।