क्षीरस्रावी ऋद्धि: Difference between revisions
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<span class="HindiText">देखें [[ ऋद्धि#8 | ऋद्धि - 8]]। | <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति/ अधिकार संख्या / ४/१०८०-१०८७</span><p class="PrakritText">करयलणि क्खिताणिं रुक्खाहारादियाणि तक्कालं। पावंति खीरभावं जीए '''खीरोसवी रिद्धी''' ।१०८०। अहवा दुक्खप्पहुदी जीए मुणिवयण सवण मेत्तेणं। पसमदि णरतिरियाणं स च्चिय '''खीरोसवी ऋद्धी''' ।१०८१। मुणिकइणिक्खिताणि लुक्खाहारादियाणिहोंतिखणे। जीए महुररसाइं स च्चिय महुवासवी रिद्धी ।१०८२। अहवा दुक्खप्पहुदी जीए मुणिवयणसवणमेत्तेण। णासदि णरतिरियाणं तच्चिय महुवासवी रिद्धी ।१०८३। मुणिपाणिसंठियाणिं रुक्खाहारादियाणि जीय खणे। पावंति अमियभावं एसा अमियासवी ऋद्धी ।१०८४। अहवा दुक्खादीणं महेसिवयणस्स सवणकालम्मि। णासंति जीए सिग्घं रिद्धी अमियआसवी णामा ।१०८५। रिसिपाणितलणिक्खित्तं रुक्खाहारादियं पि खणमेत्ते। पावेदि सप्पिरूवं जीए सा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८६। अहवा दुक्खप्पमुहं सवणेण मुणिंदव्ववयणस्स। उवसामदि जीवाणं एसा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८७।</p> | ||
<span class="HindiText">= जिससे हस्त तल पर रखे हुए रूखे आहारादिक तत्काल ही दुग्ध परिणाम को प्राप्त हो जाते हैं, वह `'''क्षीरस्रावी' ऋद्धि''' कही जाती है ।१०८०। अथवा जिस ऋद्धि से मुनियों के वचनों के श्रवणमात्र से ही मनुष्य तिर्यंचों के दुःखादि शान्त हो जाते हैं उसे '''क्षीरस्रावी ऋद्धि''' समझना चाहिए ।१०८१। जिस ऋद्धि से मुनि के हाथ में रखे गये रूखे आहारादिक क्षणभर में मधुर रस से युक्त हो जाते हैं, वह `मध्वास्रव' ऋद्धि है, ।१०८२। अथवा जिस ऋषि-मुनि के वचनों के श्रवणमात्र से मनुष्य तिर्यंच के दुःखादिक नष्ट हो जाते हैं वह मध्वास्रावी ऋद्धि है ।१०८३। जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के हाथ में स्थित रूखे आहारादिक क्षणमात्र में अमृतपने को प्राप्त करते हैं, वह अमृतास्रवी नामक ऋद्धि है ।१०८४। अथवा जिस ऋद्धि से महर्षि के वचनों के श्रवण काल में शीघ्र ही दुःखादि नष्ट हो जाते हैं, वह अमृतस्रावी नामक ऋद्धि है ।१०८५। जिस ऋद्धि से ऋषि के हस्ततल में निक्षिप्त रूखा आहारादिक भी क्षणमात्र में घृतरूप को प्राप्त करता है, वह `सर्पिरास्रावी ऋद्धि है ।१०८६। अथवा जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनीन्द्र के दिव्य वचनों के सुनने से ही जीवों के दुःखादि शान्त हो जाते हैं, वह सर्पिरास्रावी ऋद्धि है ।१०८७।</span> | |||
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Latest revision as of 11:08, 14 April 2023
तिलोयपण्णत्ति/ अधिकार संख्या / ४/१०८०-१०८७
करयलणि क्खिताणिं रुक्खाहारादियाणि तक्कालं। पावंति खीरभावं जीए खीरोसवी रिद्धी ।१०८०। अहवा दुक्खप्पहुदी जीए मुणिवयण सवण मेत्तेणं। पसमदि णरतिरियाणं स च्चिय खीरोसवी ऋद्धी ।१०८१। मुणिकइणिक्खिताणि लुक्खाहारादियाणिहोंतिखणे। जीए महुररसाइं स च्चिय महुवासवी रिद्धी ।१०८२। अहवा दुक्खप्पहुदी जीए मुणिवयणसवणमेत्तेण। णासदि णरतिरियाणं तच्चिय महुवासवी रिद्धी ।१०८३। मुणिपाणिसंठियाणिं रुक्खाहारादियाणि जीय खणे। पावंति अमियभावं एसा अमियासवी ऋद्धी ।१०८४। अहवा दुक्खादीणं महेसिवयणस्स सवणकालम्मि। णासंति जीए सिग्घं रिद्धी अमियआसवी णामा ।१०८५। रिसिपाणितलणिक्खित्तं रुक्खाहारादियं पि खणमेत्ते। पावेदि सप्पिरूवं जीए सा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८६। अहवा दुक्खप्पमुहं सवणेण मुणिंदव्ववयणस्स। उवसामदि जीवाणं एसा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८७।
= जिससे हस्त तल पर रखे हुए रूखे आहारादिक तत्काल ही दुग्ध परिणाम को प्राप्त हो जाते हैं, वह `क्षीरस्रावी' ऋद्धि कही जाती है ।१०८०। अथवा जिस ऋद्धि से मुनियों के वचनों के श्रवणमात्र से ही मनुष्य तिर्यंचों के दुःखादि शान्त हो जाते हैं उसे क्षीरस्रावी ऋद्धि समझना चाहिए ।१०८१। जिस ऋद्धि से मुनि के हाथ में रखे गये रूखे आहारादिक क्षणभर में मधुर रस से युक्त हो जाते हैं, वह `मध्वास्रव' ऋद्धि है, ।१०८२। अथवा जिस ऋषि-मुनि के वचनों के श्रवणमात्र से मनुष्य तिर्यंच के दुःखादिक नष्ट हो जाते हैं वह मध्वास्रावी ऋद्धि है ।१०८३। जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के हाथ में स्थित रूखे आहारादिक क्षणमात्र में अमृतपने को प्राप्त करते हैं, वह अमृतास्रवी नामक ऋद्धि है ।१०८४। अथवा जिस ऋद्धि से महर्षि के वचनों के श्रवण काल में शीघ्र ही दुःखादि नष्ट हो जाते हैं, वह अमृतस्रावी नामक ऋद्धि है ।१०८५। जिस ऋद्धि से ऋषि के हस्ततल में निक्षिप्त रूखा आहारादिक भी क्षणमात्र में घृतरूप को प्राप्त करता है, वह `सर्पिरास्रावी ऋद्धि है ।१०८६। अथवा जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनीन्द्र के दिव्य वचनों के सुनने से ही जीवों के दुःखादि शान्त हो जाते हैं, वह सर्पिरास्रावी ऋद्धि है ।१०८७।
देखें ऋद्धि - 8।