पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 120 - समय-व्याख्या: Difference between revisions
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Revision as of 13:16, 30 June 2023
जाणदि पस्सदि सव्वं इच्छदि सुक्खं विभेदि दुक्खादो । (120)
कुव्वदि हिदमहिदं वा भुंजदि जीवो फलं तेसिं ॥130॥
अर्थ:
जीव सब जानता है, देखता है, सुख को चाहता है, दु:ख से डरता है, हित-अहित करता है और उनके फल को भोगता है ।
समय-व्याख्या:
अन्यासाधारणजीवकार्यख्यापनमेतत् ।
चैतन्यस्वभावत्वात्कर्तृस्थायाः क्रियायाः ज्ञप्तेद्रर्शेश्च जीव एव कर्ता, न तत्सम्बन्धःपुद्गलो, यथाकाशादि । सुखाभिलाषक्रियायाः दुःखोद्वेगक्रियायाः स्वसम्वेदितहिताहित-निर्वर्तनक्रियायाश्च चैतन्यविवर्तरूपसङ्कल्पप्रभवत्वात्स एव कर्ता, नान्यः । शुभाशुभ-कर्मफलभूताया इष्टानिष्टविषयोपभोगक्रियायाश्च सुखदुःखस्वरूपस्वपरिणामक्रियाया इव स एव कर्ता, नान्यः । एतेनासाधारणकार्यानुमेयत्वं पुद्गलव्यतिरिक्त स्यात्मनो द्योतितमिति ॥120॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, अन्य से असाधारण ऐसे जीव कार्यों का कथन है (अर्थात अन्य द्रव्यों से असाधारण ऐसे जो जीव के कार्य वे यहाँ दर्शाये हैं)।
चैतन्य-स्वभावपने के कारण, कर्तृस्थित (कर्ता में रहने वाली) क्रिया का-ज्ञप्ति तथा दृशि का-जीव ही कर्ता है, उसके सम्बन्ध में रहा हुआ पुद्गल उसका कर्ता नहीं है, जिस प्रकार आकाशादि नहीं है उसी प्रकार । (चैतन्य-स्वभाव के कारण जानने और देखने की क्रिया का जीव ही कर्ता है, जहाँ जीव है वहाँ चार अरूपी चेतन द्रव्य भी हैं तथापि वे जिस प्रकार जानने और देखने की क्रिया के कर्ता नहीं हैं उसी प्रकार जीव के साथ सम्बन्ध में रहे हुए कर्म-नोकर्म-रूप पुद्गल भी उस क्रिया के कर्ता नहीं हैं ।) चैतन्य के विवर्तरूप (परिवर्तनरूप) संकल्प की उत्पत्ति (जीव में) होने के कारण, सुख की अभिलाषा-रूप क्रिया का, दुःख के उद्वेग-रूप क्रिया का तथा स्व-संवेदित हित-अहित की निष्पत्ति-रूप क्रिया का (अपने से संचेतन किये जाने वाले शुभ-अशुभ भावों को रचने रूप क्रिया का) जीव ही कर्ता है, अन्य नहीं है । शुभाशुभ कर्म के फ़लभूत १इष्टानिष्ट-विषयोपभोग क्रिया का, सुख-दुःख-स्वरूप स्व-परिणाम क्रिया की भाँति, जीव ही कर्ता है, अन्य नहीं ।
इससे ऐसा समझाया कि (उपरोक्त) असाधारण कार्यों द्वारा पुद्गल से भिन्न ऐसा आत्मा अनुमेय (अनुमान कर सकने योग्य) है ॥१२०॥
१इष्टानिष्ट विषय जिसमें निमित्त-भूत होते हैं ऐसे सुख-दुःख परिणामों के उपभोग-रूप क्रिया को जीव करता है इसलिये उसे इष्टानिष्ट विषयों के उपभोग-रूप क्रिया का कर्ता कहा जाता है ।