एकत्वानुप्रेक्षा: Difference between revisions
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<p>देखें [[ अनुप्रेक्षा ]]।</p> | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय /9/7/415</span> <p class="SanskritText">जन्मजरामरणावृत्तिमहादुःखानुभवनं प्रति एक एवाहं न कश्चिन्मे स्वःपरो वा विद्यते। एक एव जायेऽहम्। एक एव म्रिये। न मे कश्चित् स्वजनः परजनो वा व्याधिजरामरणादीनि दुःखान्यपहरति। बंधुमित्राणि श्मशानं नातिवर्तंते धर्म एव मे सहायः सदा अनपायीति चिंतनमेकत्वानुप्रेक्षा। </p> | ||
<p class="HindiText">= जन्म, जरा, मरण की आवृत्ति रूप महादुःख का अनुभव करने के लिए अकेला ही मैं हूँ, न कोई मेरा स्व है और न कोई पर है, अकेला ही मैं जन्मता हूँ, अकेला ही मरता हूँ। मेरा कोई स्वजन या परजन, व्याधि जरा और मरण आदि के दुःखों को दूर नहीं करता। बंधु और मित्र श्मशान से आगे नहीं जाते। धर्म ही मेरा कभी साथ न छोड़ने वाला सदाकाल सहायक है। इस प्रकार चिंतवन करना '''एकत्वानुप्रेक्षा''' है। </p> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ अनुप्रेक्षा ]]।</p> | |||
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सर्वार्थसिद्धि अध्याय /9/7/415
जन्मजरामरणावृत्तिमहादुःखानुभवनं प्रति एक एवाहं न कश्चिन्मे स्वःपरो वा विद्यते। एक एव जायेऽहम्। एक एव म्रिये। न मे कश्चित् स्वजनः परजनो वा व्याधिजरामरणादीनि दुःखान्यपहरति। बंधुमित्राणि श्मशानं नातिवर्तंते धर्म एव मे सहायः सदा अनपायीति चिंतनमेकत्वानुप्रेक्षा।
= जन्म, जरा, मरण की आवृत्ति रूप महादुःख का अनुभव करने के लिए अकेला ही मैं हूँ, न कोई मेरा स्व है और न कोई पर है, अकेला ही मैं जन्मता हूँ, अकेला ही मरता हूँ। मेरा कोई स्वजन या परजन, व्याधि जरा और मरण आदि के दुःखों को दूर नहीं करता। बंधु और मित्र श्मशान से आगे नहीं जाते। धर्म ही मेरा कभी साथ न छोड़ने वाला सदाकाल सहायक है। इस प्रकार चिंतवन करना एकत्वानुप्रेक्षा है।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनुप्रेक्षा ।