आवासक: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
mNo edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 116/274/12</span> <p class="PrakritText">आवासयाणं आवश्यकानां। ण वसो अवसो अवसस्स कम्ममावसगं इति व्युत्पत्तावपि सामायिकादिष्वेवायं शब्दो वर्तते। व्याधिदौर्बल्यादिना व्याकुलो भण्यते अवश परवश इति यावत्। तेनापि कर्त्तव्यं कर्मेति। यथा आशु गच्छतीत्यश्व इति व्युत्पत्तावपि न व्याघ्रादौ वर्तते अश्वशब्दौऽपि तु प्रसिद्धिवशात् तुरग एव। एवमिहापि अवश्यं यत्किंचन कर्म इतस्ततः परावृत्तिराक्रंदनं, पूत्करणं वा तद्भण्यते। अथवा आवासकानां इत्ययमर्थः आवासयंति रत्नत्रयमात्मनीति।</p> | <span class="GRef">(भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 116/274/12)</span> <p class="PrakritText">आवासयाणं आवश्यकानां। ण वसो अवसो अवसस्स कम्ममावसगं इति व्युत्पत्तावपि सामायिकादिष्वेवायं शब्दो वर्तते। व्याधिदौर्बल्यादिना व्याकुलो भण्यते अवश परवश इति यावत्। तेनापि कर्त्तव्यं कर्मेति। यथा आशु गच्छतीत्यश्व इति व्युत्पत्तावपि न व्याघ्रादौ वर्तते अश्वशब्दौऽपि तु प्रसिद्धिवशात् तुरग एव। एवमिहापि अवश्यं यत्किंचन कर्म इतस्ततः परावृत्तिराक्रंदनं, पूत्करणं वा तद्भण्यते। अथवा आवासकानां इत्ययमर्थः आवासयंति रत्नत्रयमात्मनीति।</p> | ||
<p class="HindiText">= `ण वसो अवसो अवसस्स कम्मभावसं बोधव्वा' ऐसी आवश्यक शब्द की निरुक्ति है। व्याधि-रोग अशक्तपना इत्यादि विकार जिसमें हैं ऐसे व्यक्ति को अवश कहते हैं, ऐसे व्यक्ति को जो क्रियाएँ करना योग्य है उनको आवश्यक कहते हैं। जैसे-`आशु गच्छतीत्यश्वः' अर्थात् जो शीघ्र दौड़ता है उसको अश्व कहते हैं, अर्थात् व्याघ्र आदि कोई भी प्राणी जो शीघ्र दोड़ सकते हैं वे सभी अश्व शब्द से संगृहीत होते हैं। परंतु अश्व शब्द प्रसिद्धि के वश होकर घोड़ा इस अर्थ में ही रूढ़ है। वैसे अवश्य करने योग्य जो कोई भी कार्य वह आवश्यक शब्द से कहा जाना चाहिए जैसे-लोटना, करवट बदलना, किसी को बुलाना वगैरह कर्तव्य अवश्य करने पड़ते हैं। आवश्यक शब्द यहाँ सामायिकादि क्रियाओ में ही प्रसिद्ध है। अथवा '''आवासक''' ऐसा शब्द मानकर `आवासयंति रत्नत्रयमपि इति आवश्यकाः' ऐसी भी निरुक्ति कहते हैं, अर्थात् जो आत्मा में रत्नत्रय का निवास कराते हैं उसको '''आवासक''' कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= `ण वसो अवसो अवसस्स कम्मभावसं बोधव्वा' ऐसी आवश्यक शब्द की निरुक्ति है। व्याधि-रोग अशक्तपना इत्यादि विकार जिसमें हैं ऐसे व्यक्ति को अवश कहते हैं, ऐसे व्यक्ति को जो क्रियाएँ करना योग्य है उनको आवश्यक कहते हैं। जैसे-`आशु गच्छतीत्यश्वः' अर्थात् जो शीघ्र दौड़ता है उसको अश्व कहते हैं, अर्थात् व्याघ्र आदि कोई भी प्राणी जो शीघ्र दोड़ सकते हैं वे सभी अश्व शब्द से संगृहीत होते हैं। परंतु अश्व शब्द प्रसिद्धि के वश होकर घोड़ा इस अर्थ में ही रूढ़ है। वैसे अवश्य करने योग्य जो कोई भी कार्य वह आवश्यक शब्द से कहा जाना चाहिए जैसे-लोटना, करवट बदलना, किसी को बुलाना वगैरह कर्तव्य अवश्य करने पड़ते हैं। आवश्यक शब्द यहाँ सामायिकादि क्रियाओ में ही प्रसिद्ध है। अथवा '''आवासक''' ऐसा शब्द मानकर `आवासयंति रत्नत्रयमपि इति आवश्यकाः' ऐसी भी निरुक्ति कहते हैं, अर्थात् जो आत्मा में रत्नत्रय का निवास कराते हैं उसको '''आवासक''' कहते हैं।</p> | ||
<p class="HindiText"> देखें [[ आवश्यक ]]</p> | <p class="HindiText">-अधिक जानकारी के लिए देखें [[ आवश्यक ]]</p> | ||
Latest revision as of 12:01, 14 July 2023
(भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 116/274/12)
आवासयाणं आवश्यकानां। ण वसो अवसो अवसस्स कम्ममावसगं इति व्युत्पत्तावपि सामायिकादिष्वेवायं शब्दो वर्तते। व्याधिदौर्बल्यादिना व्याकुलो भण्यते अवश परवश इति यावत्। तेनापि कर्त्तव्यं कर्मेति। यथा आशु गच्छतीत्यश्व इति व्युत्पत्तावपि न व्याघ्रादौ वर्तते अश्वशब्दौऽपि तु प्रसिद्धिवशात् तुरग एव। एवमिहापि अवश्यं यत्किंचन कर्म इतस्ततः परावृत्तिराक्रंदनं, पूत्करणं वा तद्भण्यते। अथवा आवासकानां इत्ययमर्थः आवासयंति रत्नत्रयमात्मनीति।
= `ण वसो अवसो अवसस्स कम्मभावसं बोधव्वा' ऐसी आवश्यक शब्द की निरुक्ति है। व्याधि-रोग अशक्तपना इत्यादि विकार जिसमें हैं ऐसे व्यक्ति को अवश कहते हैं, ऐसे व्यक्ति को जो क्रियाएँ करना योग्य है उनको आवश्यक कहते हैं। जैसे-`आशु गच्छतीत्यश्वः' अर्थात् जो शीघ्र दौड़ता है उसको अश्व कहते हैं, अर्थात् व्याघ्र आदि कोई भी प्राणी जो शीघ्र दोड़ सकते हैं वे सभी अश्व शब्द से संगृहीत होते हैं। परंतु अश्व शब्द प्रसिद्धि के वश होकर घोड़ा इस अर्थ में ही रूढ़ है। वैसे अवश्य करने योग्य जो कोई भी कार्य वह आवश्यक शब्द से कहा जाना चाहिए जैसे-लोटना, करवट बदलना, किसी को बुलाना वगैरह कर्तव्य अवश्य करने पड़ते हैं। आवश्यक शब्द यहाँ सामायिकादि क्रियाओ में ही प्रसिद्ध है। अथवा आवासक ऐसा शब्द मानकर `आवासयंति रत्नत्रयमपि इति आवश्यकाः' ऐसी भी निरुक्ति कहते हैं, अर्थात् जो आत्मा में रत्नत्रय का निवास कराते हैं उसको आवासक कहते हैं।
-अधिक जानकारी के लिए देखें आवश्यक