राजवार्तिक: Difference between revisions
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<span class="HindiText">आचार्य अकलंक भट्ट (ई. 620-680) द्वारा सर्वार्थसिद्धि पर की गयी विस्तृत संस्कृत वृत्ति है। इसमें सर्वार्थसिद्धि के वाक्यों को वार्तिक रूप से ग्रहण करके उनकी टीका की गयी है। यह ग्रंथ ज्ञेयार्थ से भरपूर्ण है। यदि इसे दिगंबर जैन आम्नाय का कोष कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। इस पर पं. पन्नालाल (ई. 1793 - 1863) कृत भाषा वचनिका उपलब्ध है।</span> | |||
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Latest revision as of 16:02, 16 August 2023
आचार्य अकलंक भट्ट (ई. 620-680) द्वारा सर्वार्थसिद्धि पर की गयी विस्तृत संस्कृत वृत्ति है। इसमें सर्वार्थसिद्धि के वाक्यों को वार्तिक रूप से ग्रहण करके उनकी टीका की गयी है। यह ग्रंथ ज्ञेयार्थ से भरपूर्ण है। यदि इसे दिगंबर जैन आम्नाय का कोष कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। इस पर पं. पन्नालाल (ई. 1793 - 1863) कृत भाषा वचनिका उपलब्ध है।