रात्रियोग विधि: Difference between revisions
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देखें [[ कृतिकर्म ]]।4। | <span class="GRef">मूलाचार/602</span> <span class="PrakritText">चत्तारि पडिक्कमणे किदियम्मा तिण्णि होंति सज्झाए। पुव्वण्हे अवरण्हे किदियम्मा चोद्दस्सा होंति।600।</span>=<span class="HindiText">प्रतिक्रमण काल में चार क्रियाकर्म होते हैं और स्वाध्याय काल में तीन क्रियाकर्म होते हैं। इस तरह सात सवेरे और सात साँझ को सब 14 क्रियाकर्म होते हैं।<br /> | ||
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<span class="HindiText"> अधिक जानकारी के लिये देखें [[ कृतिकर्म ]]।4।</span> | |||
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Latest revision as of 17:07, 16 August 2023
मूलाचार/602 चत्तारि पडिक्कमणे किदियम्मा तिण्णि होंति सज्झाए। पुव्वण्हे अवरण्हे किदियम्मा चोद्दस्सा होंति।600।=प्रतिक्रमण काल में चार क्रियाकर्म होते हैं और स्वाध्याय काल में तीन क्रियाकर्म होते हैं। इस तरह सात सवेरे और सात साँझ को सब 14 क्रियाकर्म होते हैं।
नं॰ |
समय |
क्रिया |
6 |
सूर्यास्त के 2 घड़ी पूर्व से सूर्यास्त तक |
दैवसिक प्रतिक्रमण व रात्रियोग धारण |
अधिक जानकारी के लिये देखें कृतिकर्म ।4।