रामानुज वेदांत: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="HindiText"> (भारतीय दर्शन) यामुन मुनि के शिष्य रामानुजने ई. 1050 में श्री भाष्य व वेदांतसार की रचना द्वारा विशिष्टाद्वैत का प्रचार किया है। क्योंकि यहाँ चित् व अचित् को ईश्वर के विशेष रूप से स्वीकार किया गया है। इसलिए इसे विशिष्टाद्वैत कहते हैं। इसके विचार बहुत प्रकार से निंबार्क वेदांत से मिलते हैं। </span> | |||
[[ | <span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें - अपरनाम विशिष्टाद्वैत−देखें [[ वेदांत#4 | वेदांत - 4]]।</span> | ||
[[Category:र]] | <noinclude> | ||
[[ रामा | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ रामानुज वेदांत या विशिष्टाद्वैत | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: र]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 09:48, 17 August 2023
(भारतीय दर्शन) यामुन मुनि के शिष्य रामानुजने ई. 1050 में श्री भाष्य व वेदांतसार की रचना द्वारा विशिष्टाद्वैत का प्रचार किया है। क्योंकि यहाँ चित् व अचित् को ईश्वर के विशेष रूप से स्वीकार किया गया है। इसलिए इसे विशिष्टाद्वैत कहते हैं। इसके विचार बहुत प्रकार से निंबार्क वेदांत से मिलते हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें - अपरनाम विशिष्टाद्वैत−देखें वेदांत - 4।