रूपसत्य: Difference between revisions
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><span class="GRef"> मूलाचार/309-313</span> <span class="PrakritText">जणपदसच्चं जध ओदणादि रुचिदे य सव्वभासाए। बहुजणसंमदमवि होदि जं तु लोए तहा देवी।309। ठवणा ठविदं जह देबदाणि णामं च देवदत्तादि। उक्कडदरोत्ति वण्णे रूवे सेओ जध बलाया।310। ......313।</span> | |||
<span class="HindiText">जो सब भाषाओं से भात के नाम पृथक्-पृथक् बोले जाते हैं जैसे चोरु, कूल, भक्त आदि ये देशसत्य हैं। और बहुत जनों के द्वारा माना गया जो नाम वह सम्मत्तसत्य है, जैसे-लोक में राजा की स्त्री को देवी कहना।309। जो अर्हंत आदि की पाषाण आदि में स्थापना वह स्थापनासत्य है। जो गुण की अपेक्षा न रखकर व्यवहार के लिए देवदत्त आदि नाम रखना वह नामसत्य है। और जो रूप के बहुतपने से कहना कि बगुलों की पंक्ति सफेद होती है वह '''रूपसत्य''' है।310। ......</span><br> | |||
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> मूलाचार/309-313 जणपदसच्चं जध ओदणादि रुचिदे य सव्वभासाए। बहुजणसंमदमवि होदि जं तु लोए तहा देवी।309। ठवणा ठविदं जह देबदाणि णामं च देवदत्तादि। उक्कडदरोत्ति वण्णे रूवे सेओ जध बलाया।310। ......313।
जो सब भाषाओं से भात के नाम पृथक्-पृथक् बोले जाते हैं जैसे चोरु, कूल, भक्त आदि ये देशसत्य हैं। और बहुत जनों के द्वारा माना गया जो नाम वह सम्मत्तसत्य है, जैसे-लोक में राजा की स्त्री को देवी कहना।309। जो अर्हंत आदि की पाषाण आदि में स्थापना वह स्थापनासत्य है। जो गुण की अपेक्षा न रखकर व्यवहार के लिए देवदत्त आदि नाम रखना वह नामसत्य है। और जो रूप के बहुतपने से कहना कि बगुलों की पंक्ति सफेद होती है वह रूपसत्य है।310। ......
अधिक जानकारी के लिये देखें सत्य - 4।