रोम: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 1027-1035/1072-1076</span> <p class="PrakritText"> अट्ठीणि हुंति तिण्णि हु सदाणि भरिदाणि कुणिममज्जाए। सव्वम्मि चेव देहे संधीणि हवंति तावदिया ।1027। ण्हारूण णवसदाइं सिरासदाणि य हवंति सत्तेव। देहम्मि मंसपेसाणि हुति पंचेव य सदाणि ।1028। चत्तारि सिरजालाणि हुंति सोलस य कंडराणि तहा। छच्चेव सिराकुच्चादेहे दो मंसरज्जू य ।1029। सत्त तयाओ कालेज्जयाणि सत्तेव होंति देहम्मि देहम्मि रामकाडोण होंति सोदी सदसहस्सा ।1030। पक्कामयासयत्थाय अंतगुंजाओ सोलस हवति। कुणिमस्स आसया सत्त हुंति देहे मणुस्सस्स ।1031। थूणाओ तिण्णि देहम्मि होंति सत्तुत्तरं च मम्मसदं। णव होंति वणमुहाइं णिच्चं कुणिमं सवंताइं ।1032। देहम्मि मच्छुलिंगं अंजलिमित्तं सयप्पमाणेण। अंजलिमिंत्तो भेदो उज्जोवि य तत्तिओ चेव ।1033। तिण्णि य वसंजलीओछच्चेव अंजलीओ पित्तस्स। सिंभोपित्तसमाणो लोहिदमद्धाढगं होदि ।1034। मुत्तं आढयमेत्तं उच्चारस्स य हवंति छप्पच्छा। वीसं णहाणि दंता बत्तीसं होंति पगदीए ।1035।</p> | |||
<p class="HindiText">= इस मनुष्य के देह में 300 अस्थि हैं, वे दुर्गंध मज्जा नामक धातु से भरी हुई हैं। और 300 ही संधि हैं ।1027। 900 स्नायु हैं, 700 सिरा हैं, 500 मांसपेशियां हैं ।1028। 4 जाल हैं, 16 कंडरा हैं, 6 सिराओं के मूल हैं, और 2 मांस रज्जू हैं ।1029। 7 त्वचा हैं, 7 कालेयक हैं, और '''80,00,000 कोटि रोम''' हैं ।1030। पक्वाशय और आमाशय में 16 आंतें रहती हैं, दुर्गंध मल के 7 आशय हैं ।1031। 3 स्थूणा हैं, 107 मर्मस्थान हैं, 9 व्रणमुख हैं, जिससे नित्य दुर्गंध स्रवता है ।1032। मस्तिष्क, मेद, ओज, शुक्र, ये चारों एक एक अंजलि प्रमाण हैं ।1033। वसा नामक धातु 3 अंजलि प्रमाण, पित्त और श्लेष्म अर्थात् कफ छह-छह अंजलि प्रमाण और रुधिर 1/2 आढक है ।1034। मूत्र एक आढक, उच्चार अर्थात् विष्ठा 6 प्रस्थ, नख 20 और दांत 32 हैं। स्वभावतः शरीर में इन अवयवों का प्रमाण कहा है।</p> | |||
<span class="HindiText"> औदारिक शरीर में रोमों का प्रमाण−देखें [[ अंतड़ी#1 | अंतड़ी - 1]]।</span> | |||
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भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 1027-1035/1072-1076
अट्ठीणि हुंति तिण्णि हु सदाणि भरिदाणि कुणिममज्जाए। सव्वम्मि चेव देहे संधीणि हवंति तावदिया ।1027। ण्हारूण णवसदाइं सिरासदाणि य हवंति सत्तेव। देहम्मि मंसपेसाणि हुति पंचेव य सदाणि ।1028। चत्तारि सिरजालाणि हुंति सोलस य कंडराणि तहा। छच्चेव सिराकुच्चादेहे दो मंसरज्जू य ।1029। सत्त तयाओ कालेज्जयाणि सत्तेव होंति देहम्मि देहम्मि रामकाडोण होंति सोदी सदसहस्सा ।1030। पक्कामयासयत्थाय अंतगुंजाओ सोलस हवति। कुणिमस्स आसया सत्त हुंति देहे मणुस्सस्स ।1031। थूणाओ तिण्णि देहम्मि होंति सत्तुत्तरं च मम्मसदं। णव होंति वणमुहाइं णिच्चं कुणिमं सवंताइं ।1032। देहम्मि मच्छुलिंगं अंजलिमित्तं सयप्पमाणेण। अंजलिमिंत्तो भेदो उज्जोवि य तत्तिओ चेव ।1033। तिण्णि य वसंजलीओछच्चेव अंजलीओ पित्तस्स। सिंभोपित्तसमाणो लोहिदमद्धाढगं होदि ।1034। मुत्तं आढयमेत्तं उच्चारस्स य हवंति छप्पच्छा। वीसं णहाणि दंता बत्तीसं होंति पगदीए ।1035।
= इस मनुष्य के देह में 300 अस्थि हैं, वे दुर्गंध मज्जा नामक धातु से भरी हुई हैं। और 300 ही संधि हैं ।1027। 900 स्नायु हैं, 700 सिरा हैं, 500 मांसपेशियां हैं ।1028। 4 जाल हैं, 16 कंडरा हैं, 6 सिराओं के मूल हैं, और 2 मांस रज्जू हैं ।1029। 7 त्वचा हैं, 7 कालेयक हैं, और 80,00,000 कोटि रोम हैं ।1030। पक्वाशय और आमाशय में 16 आंतें रहती हैं, दुर्गंध मल के 7 आशय हैं ।1031। 3 स्थूणा हैं, 107 मर्मस्थान हैं, 9 व्रणमुख हैं, जिससे नित्य दुर्गंध स्रवता है ।1032। मस्तिष्क, मेद, ओज, शुक्र, ये चारों एक एक अंजलि प्रमाण हैं ।1033। वसा नामक धातु 3 अंजलि प्रमाण, पित्त और श्लेष्म अर्थात् कफ छह-छह अंजलि प्रमाण और रुधिर 1/2 आढक है ।1034। मूत्र एक आढक, उच्चार अर्थात् विष्ठा 6 प्रस्थ, नख 20 और दांत 32 हैं। स्वभावतः शरीर में इन अवयवों का प्रमाण कहा है।
औदारिक शरीर में रोमों का प्रमाण−देखें अंतड़ी - 1।