झूठ: Difference between revisions
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देखें [[ असत्य ]]। | <span class="GRef">भगवती आराधना/सूत्र 829</span> <p class="PrakritText">जं वा गरहिदवयणं जं वा सावज्जसंजुदं वयणं। जं वा अप्पियवयणं असत्तवयणं चउत्थं च।</p> | ||
<p class="HindiText">= जो निंद्य वचन बोलना, जो अप्रिय वचन बोलना, और जो पाप युक्त वचन बोलना वह सब चौथे प्रकार का असत्य वचन है।</p> | |||
<span class="GRef">पुरुषार्थसिद्ध्युपाय श्लोक 95</span> <p class="SanskritText">गर्हितमवद्यसंयुतमप्रियमपि भवति वचनरूपं यत्। सामान्येन त्रेधा मतसिदमनृतं तुरोयं तु।</p> | |||
<p class="HindiText">= यह चौथा '''झूठ''' का भेद तीन प्रकार का है-गर्हित अर्थात् निंद्य, सावद्य अर्थात् हिंसा युक्त और अप्रिय।</p> | |||
<p class="HindiText"> अधिक जानकारी के लिये देखें [[ असत्य ]]।</p> | |||
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Latest revision as of 11:01, 7 September 2023
भगवती आराधना/सूत्र 829
जं वा गरहिदवयणं जं वा सावज्जसंजुदं वयणं। जं वा अप्पियवयणं असत्तवयणं चउत्थं च।
= जो निंद्य वचन बोलना, जो अप्रिय वचन बोलना, और जो पाप युक्त वचन बोलना वह सब चौथे प्रकार का असत्य वचन है।
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय श्लोक 95
गर्हितमवद्यसंयुतमप्रियमपि भवति वचनरूपं यत्। सामान्येन त्रेधा मतसिदमनृतं तुरोयं तु।
= यह चौथा झूठ का भेद तीन प्रकार का है-गर्हित अर्थात् निंद्य, सावद्य अर्थात् हिंसा युक्त और अप्रिय।
अधिक जानकारी के लिये देखें असत्य ।