आहार संज्ञा: Difference between revisions
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<p>देखें [[ संज्ञा ]]।</p> | <p> <span class="GRef"> (सर्वार्थसिद्धि/2/24/182/1) </span><span class="SanskritText">आहारादिविषयाभिलाष: संज्ञेति।</span> =<span class="HindiText">आहारादि विषयों की अभिलाषा को संज्ञा कहा जाता है।<span class="GRef">( राजवार्तिक/2/24/7/136/17 )</span> | ||
<p> <span class="GRef"> (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/135-138/348-351) </span><span class="SanskritText">आहारे-विशिष्टान्नादौ संज्ञावांछा आहारसंज्ञा (135-348) | |||
</span>=<span class="HindiText"> विशिष्ट अन्नादि में संज्ञा अर्थात् वांछा का होना सो '''आहारसंज्ञा''' है। (135/348) | |||
<p> <span class="GRef"> (पंचसंग्रह / प्राकृत/1/52-55) </span><span class="PrakritText">आहारदंसणेण य तस्सुवओगेण ऊणकुट्ठेण। सादिदरुदीरणाए होदि हु आहारसण्णा दु।52। | |||
</span> =<span class="HindiText"> बहिरंग में आहार के देखने से, उसके उपयोग से और उदररूप कोष्ठ के खाली होने पर तथा अंतरंग में असाता वेदनीय की उदीरणा होने पर <strong>आहारसंज्ञा</strong> उत्पन्न होती है।52। | |||
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Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
(सर्वार्थसिद्धि/2/24/182/1) आहारादिविषयाभिलाष: संज्ञेति। =आहारादि विषयों की अभिलाषा को संज्ञा कहा जाता है।( राजवार्तिक/2/24/7/136/17 )
(गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/135-138/348-351) आहारे-विशिष्टान्नादौ संज्ञावांछा आहारसंज्ञा (135-348) = विशिष्ट अन्नादि में संज्ञा अर्थात् वांछा का होना सो आहारसंज्ञा है। (135/348)
(पंचसंग्रह / प्राकृत/1/52-55) आहारदंसणेण य तस्सुवओगेण ऊणकुट्ठेण। सादिदरुदीरणाए होदि हु आहारसण्णा दु।52। = बहिरंग में आहार के देखने से, उसके उपयोग से और उदररूप कोष्ठ के खाली होने पर तथा अंतरंग में असाता वेदनीय की उदीरणा होने पर आहारसंज्ञा उत्पन्न होती है।52।
- अधिक जानकारी के लिए देखें संज्ञा ।