गुणार्थिक: Difference between revisions
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<span class="GRef">राज वार्तिक/५/३८/३/५०१/९</span> <span class="SanskritText">यदि गुणोऽपि विद्यते, ननु चोक्तम् तद्विषयस्तृतीयो मूलनय: प्राप्तनोतीति; नैष दोष:; द्रव्यस्य द्वावात्मानौ सामान्यं विशेषश्चेति। तन्न सामान्यमुत्सर्गोऽन्वय: गुण इत्यनर्थान्तरम् । विशेषो भेद: पर्याय इति पर्यायशब्द:। तत्र सामान्यविषयो नय: द्रव्यार्थिक:। विशेषविषय: पर्यायार्थिक:। तदुभयं समुदितमयुतसिद्धरूपं द्रव्यमित्युच्यते, न तद्विषयस्तृतीयो नयो भवितुमर्हति, विकलादेशत्वान्नयानाम् । तत्समुदयोऽपि प्रमाणगोचर: सकलादेशत्वात्प्रमाणस्य।</span> =<span class="HindiText">प्रश्न‒(द्रव्य व पर्याय से अतिरिक्त) यदि गुण नाम का पदार्थ विद्यमान है तो उसको विषय करने वाली एक तीसरी ('''गुणार्थिक''' नाम की) मूल नय भी होनी चाहिए ? उत्तर‒यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि द्रव्य के सामान्य और विशेष ये दो स्वरूप हैं। सामान्य, उत्सर्ग, अन्वय और गुण ये एकार्थ शब्द हैं। विशेष, भेद और पर्याय ये पर्यायवाची (एकार्थ) शब्द हैं। सामान्य को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय है, और विशेष को विषय करने वाला पर्यायार्थिक। दोनों से समुदित अयुतसिद्धरूप द्रव्य है। अत: गुण जब द्रव्य का ही सामान्य रूप है तब उसके ग्रहण के लिए द्रव्यार्थिक से पृथक् '''गुणार्थिक''' नय की कोई आवश्यकता नहीं है; क्योंकि, नय विकलादेशी है और समुदाय रूप द्रव्य सकलादेशी प्रमाण का विषय होता है। <span class="GRef">(श्लोकवार्तिक ४/१/३३/श्लोक ८/२२०)</span>; <span class="GRef">(प्रवचनसार/तत्त्व प्रदीपिका/११४)</span>।</span> | |||
<span class="HindiText">गुणार्थिक नयनिर्देश का निषेध–(देखें [[ नय#I.1.6 | नय - I.1.6]])</span> | |||
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Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
राज वार्तिक/५/३८/३/५०१/९ यदि गुणोऽपि विद्यते, ननु चोक्तम् तद्विषयस्तृतीयो मूलनय: प्राप्तनोतीति; नैष दोष:; द्रव्यस्य द्वावात्मानौ सामान्यं विशेषश्चेति। तन्न सामान्यमुत्सर्गोऽन्वय: गुण इत्यनर्थान्तरम् । विशेषो भेद: पर्याय इति पर्यायशब्द:। तत्र सामान्यविषयो नय: द्रव्यार्थिक:। विशेषविषय: पर्यायार्थिक:। तदुभयं समुदितमयुतसिद्धरूपं द्रव्यमित्युच्यते, न तद्विषयस्तृतीयो नयो भवितुमर्हति, विकलादेशत्वान्नयानाम् । तत्समुदयोऽपि प्रमाणगोचर: सकलादेशत्वात्प्रमाणस्य। =प्रश्न‒(द्रव्य व पर्याय से अतिरिक्त) यदि गुण नाम का पदार्थ विद्यमान है तो उसको विषय करने वाली एक तीसरी (गुणार्थिक नाम की) मूल नय भी होनी चाहिए ? उत्तर‒यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि द्रव्य के सामान्य और विशेष ये दो स्वरूप हैं। सामान्य, उत्सर्ग, अन्वय और गुण ये एकार्थ शब्द हैं। विशेष, भेद और पर्याय ये पर्यायवाची (एकार्थ) शब्द हैं। सामान्य को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय है, और विशेष को विषय करने वाला पर्यायार्थिक। दोनों से समुदित अयुतसिद्धरूप द्रव्य है। अत: गुण जब द्रव्य का ही सामान्य रूप है तब उसके ग्रहण के लिए द्रव्यार्थिक से पृथक् गुणार्थिक नय की कोई आवश्यकता नहीं है; क्योंकि, नय विकलादेशी है और समुदाय रूप द्रव्य सकलादेशी प्रमाण का विषय होता है। (श्लोकवार्तिक ४/१/३३/श्लोक ८/२२०); (प्रवचनसार/तत्त्व प्रदीपिका/११४)।
गुणार्थिक नयनिर्देश का निषेध–(देखें नय - I.1.6)