जटासिंहनंदि: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(8 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"> | <p class="HindiText">जटासिंहनंदि का दूसरा नाम जटाचार्य भी था। आपके सर पर अवश्य ही लंबी लंबी जटाएँ रही होगी, जिससे कि इनका नाम जटासिंह पड़ा था। आप ‘कोषण’ देश के रहने वाले थे। वहाँ ‘पल्लव’ नाम की ‘गुंडु’ नामकी पहाड़ी पर आपके चरण बने हुए हैं। आप अपने समय में बहुत प्रसिद्ध विरागी थे। इसीलिए आपका स्मरण जिनसेन नयसेन आदि, अनेकों प्राचीन आचार्यों ने किया है। कृति–वरांग चारित्र। समय–कवि भारवी (ई.श.7) के पश्चात् और उद्योतन सूरि (ई.श.9) के पूर्व। अत: ई.श.7-8 के मध्य। <span class="GRef">(तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/2/292-294)</span>।</p> | ||
[[जटायु | | <noinclude> | ||
[[ जटायु | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:ज]] | [[ जटिल | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: ज]] | |||
[[Category: इतिहास]] |
Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
जटासिंहनंदि का दूसरा नाम जटाचार्य भी था। आपके सर पर अवश्य ही लंबी लंबी जटाएँ रही होगी, जिससे कि इनका नाम जटासिंह पड़ा था। आप ‘कोषण’ देश के रहने वाले थे। वहाँ ‘पल्लव’ नाम की ‘गुंडु’ नामकी पहाड़ी पर आपके चरण बने हुए हैं। आप अपने समय में बहुत प्रसिद्ध विरागी थे। इसीलिए आपका स्मरण जिनसेन नयसेन आदि, अनेकों प्राचीन आचार्यों ने किया है। कृति–वरांग चारित्र। समय–कवि भारवी (ई.श.7) के पश्चात् और उद्योतन सूरि (ई.श.9) के पूर्व। अत: ई.श.7-8 के मध्य। (तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/2/292-294)।