तंतुचारण ऋद्धि: Difference between revisions
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देखें [[ ऋद्धि#4.6 | ऋद्धि - 4.6]]। | <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०४१-१०४३, १०४५, १०४७ </span><span class="PrakritText">अविराहिदूण जोवे अग्निसिहालंठिए विचित्ताणं। जं ताण उवरि गमणं अग्निसिहाचारणा रिद्धी ।१०४१। अधउड्ढतिरियपसरं धूमं अवलंबिऊण जं देंति। पदखेवे अक्खलिया सा रिद्धी धूमचारणा णाम ।१०४२। अविरा `हदूणजीवे अपुकाए बहुविहाण मेघाणं। जं उवरि गच्छिइ मुणी सा रिद्धी मेघचारणाणाम ।१०४३। मक्कडयतंतुपंतीउवरिं अदिलघुओ तुरदपदखेवे। गच्छेदि मुणिमहेसी सा मक्कडतंतुचारणा रिद्धी ।१०४५। णाणाविहगदिमारुदपदेसपंतीसु देंति पदखेवे। जं अक्खलिया मुणिणो सा मारुदचारणा रिद्धी ।१०४७। </span><span class="HindiText"> = अग्निशिखा में स्थित जीवों की विराधना न करके उन विचित्र अग्नि-शिखाओं पर से गमन करने को `अग्निशिखा चारण' ऋद्धि कहते हैं ।१०४१। जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनिजन नीचे ऊपर और तिरछे फैलने वाले धुएँ का अवलम्बन करके अस्खलित पादक्षेप देते हुए गमन करते हैं वह `धूमचारण' नामक ऋद्धि है ।१०४२। जिस ऋद्धि से मुनि अप्कायिक जीवों को पीड़ा न पहुँचाकर बहुत प्रकार के मेघों पर से गमन करता है वह `मेघचारण' नामक ऋद्धि है ।१०४३। जिसके द्वारा मुनि महर्षि शीघ्रता से किये गये पद-विक्षेप में अत्यन्त लघु होते हुए मकड़ी के तन्तुओं की पंक्ति पर से गमन करता है, वह `मकड़ी'''तन्तुचारण' ऋद्धि''' है ।१०४५। जिसके प्रभाव से मुनि नाना प्रकार की गति से युक्त वायु के प्रदेशों की पंक्ति पर से अस्खलित होकर पदविक्षेप करते हैं; वह `मारुतचारण' ऋद्धि है। <span class="GRef">( राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०२/२७)</span>; <span class="GRef">(चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१८/१)</span>।</span><br> | ||
<span class="GRef">धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/८०-१; ८१-८ </span><span class="PrakritText">धूमग्गि-गिरि-तरु-तंतुसंताणेसु उड्ढारोहणसत्तिसंजुत्ता सेडीचारणा णाम ।८०-१।.....धूमग्गिवाद-मेहादिचारणाणं तंतु-सेडिचारणेसु अंतब्भाओ, अणुलोमविलोमगमणेसु जीवपीडा अकरणसत्तिसंजुत्तादो। </span><span class="HindiText"> = धूम, अग्नि, पर्वत, और वृक्ष के तन्तु समूह पर से ऊपर चढ़ने की शक्ति से संयुक्त `श्रेणी चारण' है। .....धूम, अग्नि, वायु और मेघ आदिक के आश्रय से चलने वाले चारणों का `'''तन्तु-श्रेणी' चारणों''' में अन्तर्भाव हो जाता है, क्योंकि वे अनुलोम और प्रतिलोम गमन करने में जीवों को पीड़ा न करने की शक्ति से संयुक्त हैं।</span> | |||
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तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०४१-१०४३, १०४५, १०४७ अविराहिदूण जोवे अग्निसिहालंठिए विचित्ताणं। जं ताण उवरि गमणं अग्निसिहाचारणा रिद्धी ।१०४१। अधउड्ढतिरियपसरं धूमं अवलंबिऊण जं देंति। पदखेवे अक्खलिया सा रिद्धी धूमचारणा णाम ।१०४२। अविरा `हदूणजीवे अपुकाए बहुविहाण मेघाणं। जं उवरि गच्छिइ मुणी सा रिद्धी मेघचारणाणाम ।१०४३। मक्कडयतंतुपंतीउवरिं अदिलघुओ तुरदपदखेवे। गच्छेदि मुणिमहेसी सा मक्कडतंतुचारणा रिद्धी ।१०४५। णाणाविहगदिमारुदपदेसपंतीसु देंति पदखेवे। जं अक्खलिया मुणिणो सा मारुदचारणा रिद्धी ।१०४७। = अग्निशिखा में स्थित जीवों की विराधना न करके उन विचित्र अग्नि-शिखाओं पर से गमन करने को `अग्निशिखा चारण' ऋद्धि कहते हैं ।१०४१। जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनिजन नीचे ऊपर और तिरछे फैलने वाले धुएँ का अवलम्बन करके अस्खलित पादक्षेप देते हुए गमन करते हैं वह `धूमचारण' नामक ऋद्धि है ।१०४२। जिस ऋद्धि से मुनि अप्कायिक जीवों को पीड़ा न पहुँचाकर बहुत प्रकार के मेघों पर से गमन करता है वह `मेघचारण' नामक ऋद्धि है ।१०४३। जिसके द्वारा मुनि महर्षि शीघ्रता से किये गये पद-विक्षेप में अत्यन्त लघु होते हुए मकड़ी के तन्तुओं की पंक्ति पर से गमन करता है, वह `मकड़ीतन्तुचारण' ऋद्धि है ।१०४५। जिसके प्रभाव से मुनि नाना प्रकार की गति से युक्त वायु के प्रदेशों की पंक्ति पर से अस्खलित होकर पदविक्षेप करते हैं; वह `मारुतचारण' ऋद्धि है। ( राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०२/२७); (चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१८/१)।
धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/८०-१; ८१-८ धूमग्गि-गिरि-तरु-तंतुसंताणेसु उड्ढारोहणसत्तिसंजुत्ता सेडीचारणा णाम ।८०-१।.....धूमग्गिवाद-मेहादिचारणाणं तंतु-सेडिचारणेसु अंतब्भाओ, अणुलोमविलोमगमणेसु जीवपीडा अकरणसत्तिसंजुत्तादो। = धूम, अग्नि, पर्वत, और वृक्ष के तन्तु समूह पर से ऊपर चढ़ने की शक्ति से संयुक्त `श्रेणी चारण' है। .....धूम, अग्नि, वायु और मेघ आदिक के आश्रय से चलने वाले चारणों का `तन्तु-श्रेणी' चारणों में अन्तर्भाव हो जाता है, क्योंकि वे अनुलोम और प्रतिलोम गमन करने में जीवों को पीड़ा न करने की शक्ति से संयुक्त हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें ऋद्धि - 4.6।