भ्रांति: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सिद्धि विनिश्चय/ </span>मू./2/9/137 <span class="SanskritText">अतस्मिंस्तद्ग्रहो भ्रांतिः।</span>–<span class="HindiText">वस्तु का जैसा स्वरूप नहीं है वैसा ग्रहण हो जाना भ्रांति है। | <p><span class="GRef"> सिद्धि विनिश्चय/ </span>मू./2/9/137 <span class="SanskritText">अतस्मिंस्तद्ग्रहो भ्रांतिः।</span>–<span class="HindiText">वस्तु का जैसा स्वरूप नहीं है वैसा ग्रहण हो जाना भ्रांति है। <span class="GRef">( न्यायविनिश्चय/ </span>वि./1/3/70/17)। </span><br /><br> | ||
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Latest revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धि विनिश्चय/ मू./2/9/137 अतस्मिंस्तद्ग्रहो भ्रांतिः।–वस्तु का जैसा स्वरूप नहीं है वैसा ग्रहण हो जाना भ्रांति है। ( न्यायविनिश्चय/ वि./1/3/70/17)।
स्याद्वादमंजरी/16/216/3 भ्रांतिर्हि मुख्येऽर्थे क्वचिद् दृष्टे सति करणापाटवादिनान्यत्र विपर्यस्तग्रहणे प्रसिद्धा। यथा शुक्तौ रजतभ्रांति:। = यथार्थ पदार्थ को देखने पर इंद्रियों में रोग आदि हो जाने के कारण ही चाँदी में सीप के ज्ञान की तरह, पदार्थों में भ्रमरूप ज्ञान होता है।