मूलस्थान: Difference between revisions
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Latest revision as of 22:27, 17 November 2023
- भगवती आराधना/288/503 पिंडं उवहिं सेज्जं अविसोहिय जो हु भुंजमाणो हु । मूलट्ठाणं पत्तो मूलोत्ति य समणपेल्लो सो ।288। = आहार, पिछी, कमंडलु और वसतिका आदि को शोधन किये बिना ही जो साधु उनका प्रयोग करता है, वह मूलस्थान नामक दोष को प्राप्त होता है ।
- पंजाब का प्रसिद्ध वर्तमान का मुलतान नगर ( महापुराण/ प्रस्तावना 49/पं. पन्नालाल) ।