शुभचंद्र: Difference between revisions
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<span>आप राजा मुंज तथा भर्तृहरि के भाई थे, जिनके लिये विश्वभूषण भट्टारक ने अपने 'भक्तामर चरित्र' की उत्थानिका में एक लंबी-चौड़ी कथा लिखी है। ये पंचविंशतिकार पद्मनंदि (ई.श.11 का उत्तरार्ध) के शिक्षा गुरु थे। कृति - ज्ञानार्णव। समय - वि.1060-1125 (ई. 1003-1068)। | <span>आप राजा मुंज तथा भर्तृहरि के भाई थे, जिनके लिये विश्वभूषण भट्टारक ने अपने 'भक्तामर चरित्र' की उत्थानिका में एक लंबी-चौड़ी कथा लिखी है। ये पंचविंशतिकार पद्मनंदि (ई.श.11 का उत्तरार्ध) के शिक्षा गुरु थे। कृति - ज्ञानार्णव। समय - वि.1060-1125 (ई. 1003-1068)। <span class="GRef">( आत्मानुशासन/ प्रस्तावना 12/ए.एन.उपाध्ये )</span>; <span class="GRef">( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/3/148,153)</span>। </span></li> | ||
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<span>नंदिसंघ देशीयगण, दिवाकरनंदि के शिष्य और सिद्धांतदेव के गुरु। पोयसल नरेश विष्णुवर्धन के मंत्री गंगराज ने इनके स्वर्गवास के पश्चात् इनकी निषद्यका बनवाई और इन्हें 'धवला' की एक ताड़पत्र लिपि भेंट की। समय - ई.1093-1123। | <span>नंदिसंघ देशीयगण, दिवाकरनंदि के शिष्य और सिद्धांतदेव के गुरु। पोयसल नरेश विष्णुवर्धन के मंत्री गंगराज ने इनके स्वर्गवास के पश्चात् इनकी निषद्यका बनवाई और इन्हें 'धवला' की एक ताड़पत्र लिपि भेंट की। समय - ई.1093-1123। <span class="GRef">पंचसंग्रह/प्रस्तावना /H.L.Jain)</span>; (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </span></li> | ||
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<span>तत्वानुशासन के कर्त्ता तथा नागसेन के शिक्षागुरु तथा देवेंद्रकीर्ति के शिष्य। समय - वि.1220 (ई.1163) में स्वर्गवास। अत: वि.1215 (ई.1158-1185)। (ती./3/148); (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </span></li> | <span>तत्वानुशासन के कर्त्ता तथा नागसेन के शिक्षागुरु तथा देवेंद्रकीर्ति के शिष्य। समय - वि.1220 (ई.1163) में स्वर्गवास। अत: वि.1215 (ई.1158-1185)। (ती./3/148); (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </span></li> | ||
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<span>'नरपिंगल' के रचयिता एक कन्नड़ आयुर्वेदिक विद्वान् । समय - ई.श.12 का अंत। ( | <span>'नरपिंगल' के रचयिता एक कन्नड़ आयुर्वेदिक विद्वान् । समय - ई.श.12 का अंत। <span class="GRef">( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/4/311)</span>। </span></li> | ||
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<span>नंदिसंघ देशीयगण में गंडविमुक्त मल्लधारी देव के शिष्य। समय - श.1180 (ई.1258) में स्वर्गवास। ( | <span>नंदिसंघ देशीयगण में गंडविमुक्त मल्लधारी देव के शिष्य। समय - श.1180 (ई.1258) में स्वर्गवास। <span class="GRef">( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/3/148)</span>। (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </span></li> | ||
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<span>नंदिसंघ बलात्कार गण की गुर्वावली के अनुसार आप विजय कीर्ति के शिष्य और लक्ष्मीचंद्र के गुरु थे। षट्भाषा कवि की उपाधि से युक्त थे। न्याय, पुराण, कथा-पूजा आदि विषयों पर अनेक ग्रंथ रचे थे। कृति - 1. प्राकृत व्याकरण, 2. अंग पण्णत्ति, 3. शब्द चिंतामणि, 4. समस्या वदन विदारण, 5. अपशब्द खंडन, 6. तत्त्व निर्णय, 7. स्याद्वाद, 8. स्वरूप संबोधन वृत्ति, 9. अध्यात्म पद टीका, 10. सम्यक्त्व कौमुदी, 11. सुभाषितार्णव, 12. सुभाषित रत्नावली, 13. परमाध्यात्मतरंगिनी की संस्कृत टीका, 14. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा की संस्कृति टीका (माघ वि.1613) 15. पांडवपुराण (वि.1608, ई.1551), 16. करकंड चरित्र (ई.1554), 17. चंद्रप्रभ चरित्र, 18. पद्मनाभ चरित्र, 19. प्रद्मुम्न चरित्र, 20. जीवंधर चरित्र, 21. चंदन कथा, 22. नंदीश्वर कथा, 23. पार्श्वनाथ काव्य पंजिका, 24. त्रिश्क चतुर्विंशति पूजा, 25. सिद्धार्चन, 26. सरस्वतीपूजा, 27. चिंतामणि पूजा, 28. कर्म दहन विधान, 29. गणधर वलय विधान, 30. पल्योपम विधान, 31. चारित्र शुद्धि विधान, 32. चतुस्त्रिंशदधिकद्वादशशत व्रतोद्यापन, 33. सर्वतोभद्र विधान, 34. समवशरण पूजा, 35. सहस्रनाम, 36. विमान शुद्धि विधान, 37. प.आशाधरपूजा वृत्ति कुछ स्तोत्र आदि। समय - वि.1573-1613 (ई.1516-1556); | <span>नंदिसंघ बलात्कार गण की गुर्वावली के अनुसार आप विजय कीर्ति के शिष्य और लक्ष्मीचंद्र के गुरु थे। षट्भाषा कवि की उपाधि से युक्त थे। न्याय, पुराण, कथा-पूजा आदि विषयों पर अनेक ग्रंथ रचे थे। कृति - <br> | ||
1. प्राकृत व्याकरण, 2. अंग पण्णत्ति, 3. शब्द चिंतामणि, 4. समस्या वदन विदारण, 5. अपशब्द खंडन, 6. तत्त्व निर्णय, 7. स्याद्वाद,<br> | |||
8. स्वरूप संबोधन वृत्ति, 9. अध्यात्म पद टीका, 10. सम्यक्त्व कौमुदी, 11. सुभाषितार्णव, 12. सुभाषित रत्नावली, <br> | |||
13. परमाध्यात्मतरंगिनी की संस्कृत टीका, 14. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा की संस्कृति टीका (माघ वि.1613) <br> | |||
15. पांडवपुराण (वि.1608, ई.1551), 16. करकंड चरित्र (ई.1554), 17. चंद्रप्रभ चरित्र, 18. पद्मनाभ चरित्र, <br> | |||
19. प्रद्मुम्न चरित्र, 20. जीवंधर चरित्र, 21. चंदन कथा, 22. नंदीश्वर कथा, 23. पार्श्वनाथ काव्य पंजिका, <br> | |||
24. त्रिश्क चतुर्विंशति पूजा, 25. सिद्धार्चन, 26. सरस्वतीपूजा, 27. चिंतामणि पूजा, 28. कर्म दहन विधान, <br> | |||
29. गणधर वलय विधान, 30. पल्योपम विधान, 31. चारित्र शुद्धि विधान, 32. चतुस्त्रिंशदधिकद्वादशशत व्रतोद्यापन, <br> | |||
33. सर्वतोभद्र विधान, 34. समवशरण पूजा, 35. सहस्रनाम, 36. विमान शुद्धि विधान, 37. प.आशाधरपूजा वृत्ति कुछ स्तोत्र आदि।<br> | |||
समय - वि.1573-1613 (ई.1516-1556); <span class="GRef">( परमात्मप्रकाश/ प्रस्तावना 118 A.N.Upadhye</span>.); <span class="GRef">( द्रव्यसंग्रह/ प्रस्तावना 11 पं.जवाहरलाल)</span>; <span class="GRef">( पांडवपुराण/ प्रस्तावना 1 A.N.Upadhye)</span>; <span class="GRef">(जैन साहित्य इतिहास/1/459)</span>। - देखें [[ इतिहास#7.4 | इतिहास - 7.4]]।</span></li> | |||
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Latest revision as of 22:35, 17 November 2023
- आप राजा मुंज तथा भर्तृहरि के भाई थे, जिनके लिये विश्वभूषण भट्टारक ने अपने 'भक्तामर चरित्र' की उत्थानिका में एक लंबी-चौड़ी कथा लिखी है। ये पंचविंशतिकार पद्मनंदि (ई.श.11 का उत्तरार्ध) के शिक्षा गुरु थे। कृति - ज्ञानार्णव। समय - वि.1060-1125 (ई. 1003-1068)। ( आत्मानुशासन/ प्रस्तावना 12/ए.एन.उपाध्ये ); ( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/3/148,153)।
- नंदिसंघ देशीयगण, दिवाकरनंदि के शिष्य और सिद्धांतदेव के गुरु। पोयसल नरेश विष्णुवर्धन के मंत्री गंगराज ने इनके स्वर्गवास के पश्चात् इनकी निषद्यका बनवाई और इन्हें 'धवला' की एक ताड़पत्र लिपि भेंट की। समय - ई.1093-1123। पंचसंग्रह/प्रस्तावना /H.L.Jain); (देखें इतिहास - 7.5)।
- नंदिसंघ के देशीयगण में मेघचक्र त्रैविद्य के शिष्य जिनकी समाधि ई.1147 में हुई। (देखें इतिहास - 7.5)।
- तत्वानुशासन के कर्त्ता तथा नागसेन के शिक्षागुरु तथा देवेंद्रकीर्ति के शिष्य। समय - वि.1220 (ई.1163) में स्वर्गवास। अत: वि.1215 (ई.1158-1185)। (ती./3/148); (देखें इतिहास - 7.5)।
- 'नरपिंगल' के रचयिता एक कन्नड़ आयुर्वेदिक विद्वान् । समय - ई.श.12 का अंत। ( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/4/311)।
- नंदिसंघ देशीयगण में गंडविमुक्त मल्लधारी देव के शिष्य। समय - श.1180 (ई.1258) में स्वर्गवास। ( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/3/148)। (देखें इतिहास - 7.5)।
- पद्मनंदि पंडित नं.8 गुरु। समय - वि.1370 में स्वर्गवास। तदनुसार वि.1340-1370 (ई.1283-1313) (पंद्मनन्दि पंचविंशतिका/प्रस्तावना 28/A.N.Upadhye)
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नंदिसंघ बलात्कार गण की गुर्वावली के अनुसार आप विजय कीर्ति के शिष्य और लक्ष्मीचंद्र के गुरु थे। षट्भाषा कवि की उपाधि से युक्त थे। न्याय, पुराण, कथा-पूजा आदि विषयों पर अनेक ग्रंथ रचे थे। कृति -
1. प्राकृत व्याकरण, 2. अंग पण्णत्ति, 3. शब्द चिंतामणि, 4. समस्या वदन विदारण, 5. अपशब्द खंडन, 6. तत्त्व निर्णय, 7. स्याद्वाद,
8. स्वरूप संबोधन वृत्ति, 9. अध्यात्म पद टीका, 10. सम्यक्त्व कौमुदी, 11. सुभाषितार्णव, 12. सुभाषित रत्नावली,
13. परमाध्यात्मतरंगिनी की संस्कृत टीका, 14. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा की संस्कृति टीका (माघ वि.1613)
15. पांडवपुराण (वि.1608, ई.1551), 16. करकंड चरित्र (ई.1554), 17. चंद्रप्रभ चरित्र, 18. पद्मनाभ चरित्र,
19. प्रद्मुम्न चरित्र, 20. जीवंधर चरित्र, 21. चंदन कथा, 22. नंदीश्वर कथा, 23. पार्श्वनाथ काव्य पंजिका,
24. त्रिश्क चतुर्विंशति पूजा, 25. सिद्धार्चन, 26. सरस्वतीपूजा, 27. चिंतामणि पूजा, 28. कर्म दहन विधान,
29. गणधर वलय विधान, 30. पल्योपम विधान, 31. चारित्र शुद्धि विधान, 32. चतुस्त्रिंशदधिकद्वादशशत व्रतोद्यापन,
33. सर्वतोभद्र विधान, 34. समवशरण पूजा, 35. सहस्रनाम, 36. विमान शुद्धि विधान, 37. प.आशाधरपूजा वृत्ति कुछ स्तोत्र आदि।
समय - वि.1573-1613 (ई.1516-1556); ( परमात्मप्रकाश/ प्रस्तावना 118 A.N.Upadhye.); ( द्रव्यसंग्रह/ प्रस्तावना 11 पं.जवाहरलाल); ( पांडवपुराण/ प्रस्तावना 1 A.N.Upadhye); (जैन साहित्य इतिहास/1/459)। - देखें इतिहास - 7.4।