अकषाय: Difference between revisions
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5"> नोकषाय या अकषाय का लक्षण</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/8/9/385/11 </span><span class="SanskritText"> ईषदर्थे नञ: प्रयोगादीषत्कषायोऽकषाय इति।</span>=<span class="HindiText">यहाँ ईषत् अर्थात् किंचित् अर्थ में ‘नञ्’ का प्रयोग होने से किंचित् कषाय को अकषाय (या नोकषाय) कहते हैं। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/8/9/385/11 </span><span class="SanskritText"> ईषदर्थे नञ: प्रयोगादीषत्कषायोऽकषाय इति।</span>=<span class="HindiText">यहाँ ईषत् अर्थात् किंचित् अर्थ में ‘नञ्’ का प्रयोग होने से किंचित् कषाय को अकषाय (या नोकषाय) कहते हैं। <span class="GRef">( राजवार्तिक/8/9/3/574/10 )</span> <span class="GRef">( धवला 6/1,9-1,24/46/1 )</span> <span class="GRef">( धवला 13/5,5,94/359/9 )</span> <span class="GRef">( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/28/7 )</span>।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1.6" id="1.6"> अकषाय मार्गणा का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/1/116 </span><span class="PrakritText">अप्पपरोभयबाहणबंधासंजमणिमित्तकोहाई। जेसिं णत्थि कसाया अमला अकसाइ णो जीवा।116।</span>=<span class="HindiText">जिनके अपने आपको, पर को और उभय को बाधा देने, बंध करने और असंयम के आचरण में निमित्तभूत क्रोधादि कषाय नहीं हैं, तथा जो बाह्य और अभ्यंतर मल से रहित हैं ऐसे जीवों को अकषाय जानना चाहिए। | <span class="GRef"> पंचसंग्रह / प्राकृत/1/116 </span><span class="PrakritText">अप्पपरोभयबाहणबंधासंजमणिमित्तकोहाई। जेसिं णत्थि कसाया अमला अकसाइ णो जीवा।116।</span>=<span class="HindiText">जिनके अपने आपको, पर को और उभय को बाधा देने, बंध करने और असंयम के आचरण में निमित्तभूत क्रोधादि कषाय नहीं हैं, तथा जो बाह्य और अभ्यंतर मल से रहित हैं ऐसे जीवों को अकषाय जानना चाहिए। <span class="GRef">( धवला 1/1,1,111/178/351 )</span> <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/289/617 )</span>। <p>-देखें [[ कषाय#1.5 | कषाय - 1.5,1.6]]।</p> | ||
Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सर्वार्थसिद्धि/8/9/385/11 ईषदर्थे नञ: प्रयोगादीषत्कषायोऽकषाय इति।=यहाँ ईषत् अर्थात् किंचित् अर्थ में ‘नञ्’ का प्रयोग होने से किंचित् कषाय को अकषाय (या नोकषाय) कहते हैं। ( राजवार्तिक/8/9/3/574/10 ) ( धवला 6/1,9-1,24/46/1 ) ( धवला 13/5,5,94/359/9 ) ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/28/7 )।
पंचसंग्रह / प्राकृत/1/116 अप्पपरोभयबाहणबंधासंजमणिमित्तकोहाई। जेसिं णत्थि कसाया अमला अकसाइ णो जीवा।116।=जिनके अपने आपको, पर को और उभय को बाधा देने, बंध करने और असंयम के आचरण में निमित्तभूत क्रोधादि कषाय नहीं हैं, तथा जो बाह्य और अभ्यंतर मल से रहित हैं ऐसे जीवों को अकषाय जानना चाहिए। ( धवला 1/1,1,111/178/351 ) ( गोम्मटसार जीवकांड/289/617 )।
-देखें कषाय - 1.5,1.6।