अप्रत्याख्यानक्रिया: Difference between revisions
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<p> आस्रवकारी पांच क्रियाओं में एक क्रिया― कर्मोदय के वशीभूत होकर पापों से निवृत्त नहीं होना । क्रोध, मान, माया, और लोभ के भेद से इसके चार भेद होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 8.224-241, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.82 </span>देखें [[ सांपरायिकआस्रव ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> आस्रवकारी पांच क्रियाओं में एक क्रिया― कर्मोदय के वशीभूत होकर पापों से निवृत्त नहीं होना । क्रोध, मान, माया, और लोभ के भेद से इसके चार भेद होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 8.224-241, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#82|हरिवंशपुराण - 58.82]] </span>देखें [[ सांपरायिकआस्रव ]]</p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
आस्रवकारी पांच क्रियाओं में एक क्रिया― कर्मोदय के वशीभूत होकर पापों से निवृत्त नहीं होना । क्रोध, मान, माया, और लोभ के भेद से इसके चार भेद होते हैं । महापुराण 8.224-241, हरिवंशपुराण - 58.82 देखें सांपरायिकआस्रव