अंगप्रविष्ट: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> श्रुत का प्रथम भेद गणधरों द्वारा सर्वज्ञ का वाणी से रचा गया श्रुत है । यह ग्यारह अंग और चौदह पूर्व रूप होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.92-101 </span>देखें [[ अंग और पूर्व ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> श्रुत का प्रथम भेद गणधरों द्वारा सर्वज्ञ का वाणी से रचा गया श्रुत है । यह ग्यारह अंग और चौदह पूर्व रूप होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#92|हरिवंशपुराण - 2.92-101]] </span>देखें [[ अंग और पूर्व ]]</p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
श्रुत का प्रथम भेद गणधरों द्वारा सर्वज्ञ का वाणी से रचा गया श्रुत है । यह ग्यारह अंग और चौदह पूर्व रूप होता है । हरिवंशपुराण - 2.92-101 देखें अंग और पूर्व