एकत्वभावना: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> बारह भावनाओं में एक भावना । इस भावना में ज्ञान, दर्शन स्वरूपी आत्मा अकेला है, वह अकेला ही सुख-दु:ख का भोक्ता है, तपश्चरण और रत्नत्रय आदि से वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है, ऐसा अदीन मन से चिंतन किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 11. 106,38. 184 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#237|पद्मपुराण - 14.237-239]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 25.90-92, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 35-43 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> बारह भावनाओं में एक भावना । इस भावना में ज्ञान, दर्शन स्वरूपी आत्मा अकेला है, वह अकेला ही सुख-दु:ख का भोक्ता है, तपश्चरण और रत्नत्रय आदि से वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है, ऐसा अदीन मन से चिंतन किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 11. 106,38. 184 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#237|पद्मपुराण - 14.237-239]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 25.90-92, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 35-43 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
बारह भावनाओं में एक भावना । इस भावना में ज्ञान, दर्शन स्वरूपी आत्मा अकेला है, वह अकेला ही सुख-दु:ख का भोक्ता है, तपश्चरण और रत्नत्रय आदि से वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है, ऐसा अदीन मन से चिंतन किया जाता है । महापुराण 11. 106,38. 184 पद्मपुराण - 14.237-239, पांडवपुराण 25.90-92, वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 35-43