एकशैल: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> पूर्व विदेह का वक्षारगिरि। यह नील पर्वत और सीता नदी क मध्य में स्थित है । नदी के तट पर इसकी ऊँचाई पांच सौ योजन है इसके शिखर पर चार कूट है । उनमें कुलाचलों के समीपवर्ती कूटों पर जिनेंद्र भगवान् के चैत्यालय है और बीच के कूटों पर व्यंतर देवों के क्रीड़ागृह बने हुए है । <span class="GRef"> महापुराण 63. 202, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 228, 233-235 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> पूर्व विदेह का वक्षारगिरि। यह नील पर्वत और सीता नदी क मध्य में स्थित है । नदी के तट पर इसकी ऊँचाई पांच सौ योजन है इसके शिखर पर चार कूट है । उनमें कुलाचलों के समीपवर्ती कूटों पर जिनेंद्र भगवान् के चैत्यालय है और बीच के कूटों पर व्यंतर देवों के क्रीड़ागृह बने हुए है । <span class="GRef"> महापुराण 63. 202, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#228|हरिवंशपुराण - 5.228]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#233|हरिवंशपुराण - 5.233]]-235 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पूर्व विदेह का एक वक्षार, उसका एक कूट तथा उसका रक्षक देव-देखें लोक - 5.3।
पुराणकोष से
पूर्व विदेह का वक्षारगिरि। यह नील पर्वत और सीता नदी क मध्य में स्थित है । नदी के तट पर इसकी ऊँचाई पांच सौ योजन है इसके शिखर पर चार कूट है । उनमें कुलाचलों के समीपवर्ती कूटों पर जिनेंद्र भगवान् के चैत्यालय है और बीच के कूटों पर व्यंतर देवों के क्रीड़ागृह बने हुए है । महापुराण 63. 202, हरिवंशपुराण - 5.228,हरिवंशपुराण - 5.233-235