कुमार: Difference between revisions
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<li | <li class="HindiText"> द्वि.कुमारनंदि का नाम कुंदकुंद के शिक्षागुरु के रूप में याद किया जाता है। लोहाचार्य तथा माघनंदि के समकालीन अनुमान किये जाते हैं। <span class="GRef">( पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/ मंगलाचरण/1)</span> : <span class="GRef">(कार्तिकेय अनुप्रेक्षा/प्रस्तावना 70/A.N. Upadhey)</span> माघनंदि के अनुसार आप का काल वी.नि. 575−614 (ई॰48−87)। देखें− [[ इतिहास#7.4 । इतिहास 7.4 ]] –नंदिसंघ बलात्कारगण के अनुसार विक्रम शक स॰ 36−40 (ई॰ 114−118)। श्रुतावतार के अनुसार वि॰ नि॰ 593−614 (ई॰ 66−87) नंदिसंघ बलात्कारगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें [[ इतिहास ]]) आप वज्रनंदि के शिष्य तथा लोकचंद्र के गुरु थे-विक्रम शक सं॰ 386−427 (ई॰ 464−505)। समय–41 वर्ष आता है। </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> कार्तिकेयानुप्रेक्षा के कर्ता कुमार स्वामी उमास्वामी के समकालीन या उनके कुछ उत्तरवर्ती हैं। कार्तिकेय अनुप्रेक्षा/394 की टीका में जो ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है कि </span><span class="SanskritText">‘‘स्वामी कार्तिकेयमुनि: क्रौंचराजकृतोपसर्गसोढ्वासाम्यपरिणामेण देवलोके प्राप्त:।’’</span><span class="HindiText"> यह संभवत: किसी दूसरे व्यक्ति के लिए लिखा गया प्रतीत होता है। भगवति आराधना/1549 में क्रौंच पक्षी कृत उपसर्ग को प्राप्त एक व्यक्ति का उल्लेख मिलता है। उमास्वामी के अनुसार कुमार स्वामी का समय वि॰श॰ 2−3 (ई॰ श॰ 2 का मध्य) आता है। <span class="GRef">(जैन साहित्य और इतिहास/2/134,138)</span>। </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> कुमारसेन गुरु चंद्रोदय के कर्ता आचार्य प्रभाचंद के गुरु थे। आपने मूलकुंड नामक स्थान पर समाधिमरण किया था। वि॰ 753 में आपने काष्ठा संघ की स्थापना की थी। तदनुसार इनका समय वि॰श॰ 8(ई॰ श॰8 पूर्व) कल्पित किया जा सकता है। <span class="GRef">(तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/2/351)</span>: ([[ इतिहास#7.9 | इतिहास 7.9 ]])। </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> कुमार नंदि आचार्य ‘वादन्याय’ ग्रंथ के रचयिता एक महान् जैन नैयायिक तथा तार्किक थे। आचार्य विद्यानंद ने अपने ग्रंथों में इनकी कारिकायें उद्धृत की हैं। समय−अकलंक तथा विद्यानंदि के मध्य ई॰श॰ 8−9 का मध्य। <span class="GRef">(तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/2/350,448)</span>। </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> पंचस्तूप संघ की गुर्वावली के अनुसार द्वितीय कुमारसेन विनयसेन के शिष्य थे। नाथूराम जी प्रेमी के अनुसार ये काष्ठा संघ के संस्थापक थे। समय−वि॰ 845−955 ई॰ 788−899)। परंतु सिद्धिविनिश्चय/प्रस्तावना 38/पं॰ महेंद्र कुमार के अनुसार ई॰ 720−800। </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> नंदिसंघदेशीयगण के अनुसार आविद्धकरण पद्मनंदि न॰ 2 का नाम कौमार देव था। समय ई॰ 930−1030/देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास 7.5]]।</span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> कुमार पंडित जिनका समय ई॰ 1239 है <span class="GRef">(कार्तिकेय अनुप्रेक्षा/प्रस्तावना 71/A.N. Upadhey)</span>। </span></li> | ||
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<span class="HindiText"> (1) राजा श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार । <span class="GRef"> महापुराण 75.24,30 </span></br><span class="HindiText">(2) भरतेश का पुत्र अर्ककीति । <span class="GRef"> महापुराण 45.42 </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- श्रेयांसनाथ भगवान् का शासक यक्ष–देखें तीर्थंकर - 5.3।
- आत्म–प्रबोध/प्रस्तावना पंडित गजाधरलाल-आप कविवर थे। द्विजवंशावतंस विद्वद्वर गोविंदभट्ट के ज्येष्ठ पुत्र थे व प्रसिद्ध कवि हस्तिमल्ल के ज्येष्ठ भ्राता थे। समय–ई॰ 1290 वि॰ 1347। कृति–आत्मप्रबोध।
इस नाम के अनेकों आचार्य, पंडित व कवि आदि हुए हैं जैसे कि-
- नागर शाखा के आचार्य कुमारनंदि जिन्होंने मथुरा के सरस्वती आंदोलन में ग्रंथ निर्माण का कार्य था। नागर शाखा ई. श.1 में विद्यमान थी। (जैन साहित्य और इतिहास/2/135)
- द्वि.कुमारनंदि का नाम कुंदकुंद के शिक्षागुरु के रूप में याद किया जाता है। लोहाचार्य तथा माघनंदि के समकालीन अनुमान किये जाते हैं। ( पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/ मंगलाचरण/1) : (कार्तिकेय अनुप्रेक्षा/प्रस्तावना 70/A.N. Upadhey) माघनंदि के अनुसार आप का काल वी.नि. 575−614 (ई॰48−87)। देखें− इतिहास#7.4 । इतिहास 7.4 –नंदिसंघ बलात्कारगण के अनुसार विक्रम शक स॰ 36−40 (ई॰ 114−118)। श्रुतावतार के अनुसार वि॰ नि॰ 593−614 (ई॰ 66−87) नंदिसंघ बलात्कारगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें इतिहास ) आप वज्रनंदि के शिष्य तथा लोकचंद्र के गुरु थे-विक्रम शक सं॰ 386−427 (ई॰ 464−505)। समय–41 वर्ष आता है।
- कार्तिकेयानुप्रेक्षा के कर्ता कुमार स्वामी उमास्वामी के समकालीन या उनके कुछ उत्तरवर्ती हैं। कार्तिकेय अनुप्रेक्षा/394 की टीका में जो ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है कि ‘‘स्वामी कार्तिकेयमुनि: क्रौंचराजकृतोपसर्गसोढ्वासाम्यपरिणामेण देवलोके प्राप्त:।’’ यह संभवत: किसी दूसरे व्यक्ति के लिए लिखा गया प्रतीत होता है। भगवति आराधना/1549 में क्रौंच पक्षी कृत उपसर्ग को प्राप्त एक व्यक्ति का उल्लेख मिलता है। उमास्वामी के अनुसार कुमार स्वामी का समय वि॰श॰ 2−3 (ई॰ श॰ 2 का मध्य) आता है। (जैन साहित्य और इतिहास/2/134,138)।
- कुमारसेन गुरु चंद्रोदय के कर्ता आचार्य प्रभाचंद के गुरु थे। आपने मूलकुंड नामक स्थान पर समाधिमरण किया था। वि॰ 753 में आपने काष्ठा संघ की स्थापना की थी। तदनुसार इनका समय वि॰श॰ 8(ई॰ श॰8 पूर्व) कल्पित किया जा सकता है। (तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/2/351): ( इतिहास 7.9 )।
- कुमार नंदि आचार्य ‘वादन्याय’ ग्रंथ के रचयिता एक महान् जैन नैयायिक तथा तार्किक थे। आचार्य विद्यानंद ने अपने ग्रंथों में इनकी कारिकायें उद्धृत की हैं। समय−अकलंक तथा विद्यानंदि के मध्य ई॰श॰ 8−9 का मध्य। (तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा/2/350,448)।
- पंचस्तूप संघ की गुर्वावली के अनुसार द्वितीय कुमारसेन विनयसेन के शिष्य थे। नाथूराम जी प्रेमी के अनुसार ये काष्ठा संघ के संस्थापक थे। समय−वि॰ 845−955 ई॰ 788−899)। परंतु सिद्धिविनिश्चय/प्रस्तावना 38/पं॰ महेंद्र कुमार के अनुसार ई॰ 720−800।
- नंदिसंघदेशीयगण के अनुसार आविद्धकरण पद्मनंदि न॰ 2 का नाम कौमार देव था। समय ई॰ 930−1030/देखें इतिहास 7.5।
- कुमार पंडित जिनका समय ई॰ 1239 है (कार्तिकेय अनुप्रेक्षा/प्रस्तावना 71/A.N. Upadhey)।
पुराणकोष से
(1) राजा श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार । महापुराण 75.24,30(2) भरतेश का पुत्र अर्ककीति । महापुराण 45.42