कौशिक: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> (1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित साठ नगरों में तेईस का नगर । राजा वर्ण इसी नगर के नृप थे । पांडव प्रवास काल में यहाँ आये थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#88|हरिवंशपुराण - 22.88]], 45.61, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 13.2-3 </span></br><span class="HindiText">(2) अदिति देवी द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त आठ विद्यानिकायों में एक विद्या-निकाय । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#57|हरिवंशपुराण - 22.57]] </span></br><span class="HindiText">(3) सिद्धकूट जिनालय में कौशिक स्तंभ का आश्रय लेकर बैठने वाली विद्याधरों की एक जाति । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_26#13|हरिवंशपुराण - 26.13]] </span></br><span class="HindiText">(4) एक ऋषि । परशुराम के भय से कार्यवीर्य की गर्भवती पत्नी तारा भयभीत होकर गुप्त रूप से इसी के आश्रय में गयी थी । चंदन वन की प्रसिद्ध वेश्या रंगसेना की पुत्री कामपताका के नृत्य को देखकर यह क्षुब्ध हो गया था । कामपताका की प्राप्ति मे बाधक होने से राजा को अपना द्वेषी जानकर इसने सर्प बनकर राजा को मारने का शाप दिया । निदान वश मरकर यह सर्प हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_25#8|हरिवंशपुराण - 25.8-11]], 29. 28-32, 49-50 </span>इसकी चपलवेगा नाम की भार्या तथा उससे उत्पन्न मृगश्रंग नामक पुत्र था । <span class="GRef"> महापुराण 62.380 </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर–देखें विद्याधर ।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित साठ नगरों में तेईस का नगर । राजा वर्ण इसी नगर के नृप थे । पांडव प्रवास काल में यहाँ आये थे । हरिवंशपुराण - 22.88, 45.61, पांडवपुराण 13.2-3(2) अदिति देवी द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त आठ विद्यानिकायों में एक विद्या-निकाय । हरिवंशपुराण - 22.57
(3) सिद्धकूट जिनालय में कौशिक स्तंभ का आश्रय लेकर बैठने वाली विद्याधरों की एक जाति । हरिवंशपुराण - 26.13
(4) एक ऋषि । परशुराम के भय से कार्यवीर्य की गर्भवती पत्नी तारा भयभीत होकर गुप्त रूप से इसी के आश्रय में गयी थी । चंदन वन की प्रसिद्ध वेश्या रंगसेना की पुत्री कामपताका के नृत्य को देखकर यह क्षुब्ध हो गया था । कामपताका की प्राप्ति मे बाधक होने से राजा को अपना द्वेषी जानकर इसने सर्प बनकर राजा को मारने का शाप दिया । निदान वश मरकर यह सर्प हुआ । हरिवंशपुराण - 25.8-11, 29. 28-32, 49-50 इसकी चपलवेगा नाम की भार्या तथा उससे उत्पन्न मृगश्रंग नामक पुत्र था । महापुराण 62.380