गौरी: Difference between revisions
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<li>एक विद्याधर विद्या।–देखें [[ विद्या ]]। </li> | <li>एक विद्याधर विद्या।–देखें [[ विद्या#3| विद्या-3 ]]। </li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक देश । <span class="GRef"> महापुराण 46. 145 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक देश । <span class="GRef"> महापुराण 46. 145 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक विद्या । कनकमाला ने यह विद्या प्रद्युम्न को दी थी । दिति और अदिति द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त विद्याओं में सोलह निकायों की एक विद्या । <span class="GRef"> महापुराण 62.396, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.62 27.131, 47.63-64 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक विद्या । कनकमाला ने यह विद्या प्रद्युम्न को दी थी । दिति और अदिति द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त विद्याओं में सोलह निकायों की एक विद्या । <span class="GRef"> महापुराण 62.396, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#62|हरिवंशपुराण - 22.62]] 27.131, 47.63-64 </span></p> | ||
<p id="3">(3) कृष्ण की सातवीं पटट्रानी । यह वीतशोकपुर/सिंधु देश के वीतभय नगर के राजा मेरुचंद्र/मेरु और उसकी रानी चंद्रवती की पुत्री थी । इसके पूर्व यह पुन्नागपुर नगर के राजा हेमांग की यशस्वती नामा रानी थी । मरकर यह स्वर्ग गयी और वहां से च्युत हो कौशांबी नगरी के सुमति श्रेष्ठी की धार्मिकी नाम की पुत्री हुई । मरकर यह महाशुक्र स्वर्ग मे जन्मी और वहाँ से च्युत हो इस पर्याय को प्राप्त हुई । <span class="GRef"> महापुराण 71. 126-127, 429-441, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 44. 33-36 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कृष्ण की सातवीं पटट्रानी । यह वीतशोकपुर/सिंधु देश के वीतभय नगर के राजा मेरुचंद्र/मेरु और उसकी रानी चंद्रवती की पुत्री थी । इसके पूर्व यह पुन्नागपुर नगर के राजा हेमांग की यशस्वती नामा रानी थी । मरकर यह स्वर्ग गयी और वहां से च्युत हो कौशांबी नगरी के सुमति श्रेष्ठी की धार्मिकी नाम की पुत्री हुई । मरकर यह महाशुक्र स्वर्ग मे जन्मी और वहाँ से च्युत हो इस पर्याय को प्राप्त हुई । <span class="GRef"> महापुराण 71. 126-127, 429-441, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_44#33|हरिवंशपुराण - 44.33-36]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भगवान् वासुपूज्य की शासक यक्षिणी–देखें तीर्थंकर - 5.3।
- एक विद्याधर विद्या।–देखें विद्या-3 ।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक देश । महापुराण 46. 145
(2) एक विद्या । कनकमाला ने यह विद्या प्रद्युम्न को दी थी । दिति और अदिति द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त विद्याओं में सोलह निकायों की एक विद्या । महापुराण 62.396, हरिवंशपुराण - 22.62 27.131, 47.63-64
(3) कृष्ण की सातवीं पटट्रानी । यह वीतशोकपुर/सिंधु देश के वीतभय नगर के राजा मेरुचंद्र/मेरु और उसकी रानी चंद्रवती की पुत्री थी । इसके पूर्व यह पुन्नागपुर नगर के राजा हेमांग की यशस्वती नामा रानी थी । मरकर यह स्वर्ग गयी और वहां से च्युत हो कौशांबी नगरी के सुमति श्रेष्ठी की धार्मिकी नाम की पुत्री हुई । मरकर यह महाशुक्र स्वर्ग मे जन्मी और वहाँ से च्युत हो इस पर्याय को प्राप्त हुई । महापुराण 71. 126-127, 429-441, हरिवंशपुराण - 44.33-36