चक्र: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह सेना में दंडरत्न के पीछे चलता है । इसकी एक हजार देव रक्षा करते हैं । इसके स्वामी के कुटुंबी इससे अप्रभावित रहते हैं । यह नारायण और प्रतिनारायण का आयुध है । इससे नारायण का वध नहीं होता, प्रतिनारायण का होता है । इसमें एक हजार आरे रहते हैं । राम-रावण युद्ध में तथा कृष्णा-जरासंध युद्ध में इसका व्यवहार हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 6.103, 12.208, 28.3, 29.4, 34.26, 36.66, 37. 82-85, 44.180, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 58.34, 75.44-60, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52-83-84 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह सेना में दंडरत्न के पीछे चलता है । इसकी एक हजार देव रक्षा करते हैं । इसके स्वामी के कुटुंबी इससे अप्रभावित रहते हैं । यह नारायण और प्रतिनारायण का आयुध है । इससे नारायण का वध नहीं होता, प्रतिनारायण का होता है । इसमें एक हजार आरे रहते हैं । राम-रावण युद्ध में तथा कृष्णा-जरासंध युद्ध में इसका व्यवहार हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 6.103, 12.208, 28.3, 29.4, 34.26, 36.66, 37. 82-85, 44.180, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#34|पद्मपुराण - 58.34]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#75|पद्मपुराण - 58.75]].44-60, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52-83-84 </span></p> | ||
<p id="2">(2) सानत्कुमार और माहेंद्र स्वर्ग के सात इंद्रक विमानों में सातवां इंद्रक विमान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.48 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) सानत्कुमार और माहेंद्र स्वर्ग के सात इंद्रक विमानों में सातवां इंद्रक विमान । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#48|हरिवंशपुराण - 6.48]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- सनत्कुमार स्वर्ग का प्रथम पटल–देखें स्वर्ग - 5.3;
- चक्रवर्ती का एक प्रधान रत्न–देखें शलाका पुरुष - 2;
- धर्मचक्र–देखें धर्मचक्र ।
पुराणकोष से
(1) चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह सेना में दंडरत्न के पीछे चलता है । इसकी एक हजार देव रक्षा करते हैं । इसके स्वामी के कुटुंबी इससे अप्रभावित रहते हैं । यह नारायण और प्रतिनारायण का आयुध है । इससे नारायण का वध नहीं होता, प्रतिनारायण का होता है । इसमें एक हजार आरे रहते हैं । राम-रावण युद्ध में तथा कृष्णा-जरासंध युद्ध में इसका व्यवहार हुआ था । महापुराण 6.103, 12.208, 28.3, 29.4, 34.26, 36.66, 37. 82-85, 44.180, पद्मपुराण - 58.34,पद्मपुराण - 58.75.44-60, हरिवंशपुराण 52-83-84
(2) सानत्कुमार और माहेंद्र स्वर्ग के सात इंद्रक विमानों में सातवां इंद्रक विमान । हरिवंशपुराण - 6.48