जन्माभिषेक: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इंद्रों द्वारा पांडुकशिला पर निर्मित सिंहासन पर जिनेंद्र को विराजमान कर की गयी उनकी अभिषेक किया । असंख्य देव क्षीरसागर से जल कलश भरकर सुमेरु पर्वत तक हाथों हाथ लाते हैं । इस समय सौधर्मेंद्र तीर्थंकर को पूर्वाभिमुख विराजमान करके सोत्साह जलधारा | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इंद्रों द्वारा पांडुकशिला पर निर्मित सिंहासन पर जिनेंद्र को विराजमान कर की गयी उनकी अभिषेक किया । असंख्य देव क्षीरसागर से जल कलश भरकर सुमेरु पर्वत तक हाथों हाथ लाते हैं । इस समय सौधर्मेंद्र तीर्थंकर को पूर्वाभिमुख विराजमान करके सोत्साह जलधारा छोड़ता है । अन्य सभी स्वर्गों के इंद्र स्वर्ण कलशों से अभिषेक करते हैं शेष देव जलध्वनि करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 13.82-121, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 9.8-40 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: ज]] | [[Category: ज]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इंद्रों द्वारा पांडुकशिला पर निर्मित सिंहासन पर जिनेंद्र को विराजमान कर की गयी उनकी अभिषेक किया । असंख्य देव क्षीरसागर से जल कलश भरकर सुमेरु पर्वत तक हाथों हाथ लाते हैं । इस समय सौधर्मेंद्र तीर्थंकर को पूर्वाभिमुख विराजमान करके सोत्साह जलधारा छोड़ता है । अन्य सभी स्वर्गों के इंद्र स्वर्ण कलशों से अभिषेक करते हैं शेष देव जलध्वनि करते हैं । महापुराण 13.82-121, वीरवर्द्धमान चरित्र 9.8-40