जयबाहु: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> भगवान् महावीर के निर्वाण के पांच सौ पैसठ वर्ष बाद एक गौ अठारह वर्ष के काल में हुए आचारांग धारी चार मुनियों में तीसरे मुनि, अपरनाम यशोबाहु । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 66.24, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-50 | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> भगवान् महावीर के निर्वाण के पांच सौ पैसठ वर्ष बाद एक गौ अठारह वर्ष के काल में हुए आचारांग धारी चार मुनियों में तीसरे मुनि, अपरनाम यशोबाहु । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_66#24|हरिवंशपुराण - 66.24]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-50 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप आठ अंगधारी थे। दूसरी मान्यता के अनुसार आप केवल आचारांगधारी थे। अपर नाम भद्रबाहु या यशोबाहु था। (विशेष देखो भद्रबाहु-द्वितीय)।
पुराणकोष से
भगवान् महावीर के निर्वाण के पांच सौ पैसठ वर्ष बाद एक गौ अठारह वर्ष के काल में हुए आचारांग धारी चार मुनियों में तीसरे मुनि, अपरनाम यशोबाहु । हरिवंशपुराण - 66.24, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-50