जरत्कुमार: Difference between revisions
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<li> द्वारका दहन के पश्चात् कलिंग का राजा हुआ। इसकी संतति में ही राजा वसुध्वज हुए।–देखें [[ इतिहास#7.10 | इतिहास - 7.10]]। </li> | |||
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जरत्कुमार राजा वसुदेव और उसकी रानी जीरा का ज्येष्ठ पुत्र, वाह्नीक का सहोदर और कृष्ण का भाई था। इसके रथ की ध्वजाएँ—हरिणांकित थीं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#63|हरिवंशपुराण - 48.63]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#31|हरिवंशपुराण - 48.31]].6-7 </span>तीर्थंकर नेमिनाथ से अपने को कृष्ण की मृत्यु का कारण जानकर यह जंगल में रहने लगा था । <span class="GRef"> महापुराण 72.186, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_61#30|हरिवंशपुराण - 61.30]] </span>कृष्ण का मेरे द्वारा मरण न हो एतदर्थ इसने बारह वर्ष जंगल में बिताये थे । | |||
द्वारिका के जलने पर कृष्ण और बलदेव द्वारिका छोड़ दक्षिण दिशा की ओर चले आये थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_61#90|हरिवंशपुराण - 61.90]] </span>घूमते हुए वे उस वन में जा पंहुचे जहाँ यह विद्यमान था । कृष्ण को प्यास से व्याकुलित देखकर बलदेव पानी लेने के लिए गया हुआ था । इधर कृष्ण बायें घुटने पर दायां पैर रखकर वृक्ष की छाया में सोये थे । कृष्ण के हिलते हुए वस्त्र को मृग का कान समझकर इसने तीक्ष्ण बाण से कृष्ण का पैर बेध दिया । निकट आने पर जब इसे पता चला कि वे तो कृष्ण है वह उनके चरणों में आ गिरा और बहुत विलाप किया । कृष्ण ने बड़े भाई बलराम के क्रोध का संकेत देकर कौस्तुभमणि देते हुए इसे शीघ्र वहाँ से पांडवों के पास जाने के लिए कह दिया । यह भी उनके पैर से बाण निकालकर चला आया । कृष्ण का मरण उसी बाण के घाव से हुआ । | |||
<span class="GRef"> हरिवंशपुराण 62 14-61 </span>इसके पश्चात् कृष्ण की आज्ञानुसार इसने भील के वेष में कृष्ण के दूत के रूप में पांडवों से भेंट की तथा कृष्ण-मरण का समाचार सुनाते हुए प्रतीति के लिए कौस्तुभमणि दिखाया । पांडवों ने द्वारिका को पुन: बसाया और इसे वहाँ का राजा बनाया तथा अनेक राजकन्याओं के साथ इनका विवाह किया ।<span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_63#45|हरिवंशपुराण - 63.45-76]] </span>कलिंग राजा की पुत्री इसकी पटरानी थी । इससे उत्पन्न वसुध्वज नामक पुत्र को राज्य सौंप कर यह दीक्षित हो गया। कृष्ण के दाहसंस्कार के बाद बलदेव तथा पांडव दीक्षित हुए । | |||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- ( हरिवंशपुराण/ सर्ग/श्लोक)–रानी जरा से वसुदेव का पुत्र था। (48-63) भगवान् नेमिनाथ के मुख से अपने को कृष्ण की मृत्यु का कारण जान जंगल में जाकर रहने लगा (61-30)। द्वारिका जलने पर जब कृष्ण वन में आये तो दूर से उन्हें हिरन समझकर बाण मारा, जिससे वह मर गये (62-27/61)। पांडवों को जाकर सब समाचार बताया (63/49)। और उनके द्वारा राज्य प्राप्त किया (63/72)। इनसे यादव वंश की परंपरा चली। अंत में दीक्षा धारण कर ली। (66/3)।
- द्वारका दहन के पश्चात् कलिंग का राजा हुआ। इसकी संतति में ही राजा वसुध्वज हुए।–देखें इतिहास - 7.10।
पुराणकोष से
जरत्कुमार राजा वसुदेव और उसकी रानी जीरा का ज्येष्ठ पुत्र, वाह्नीक का सहोदर और कृष्ण का भाई था। इसके रथ की ध्वजाएँ—हरिणांकित थीं । हरिवंशपुराण - 48.63,हरिवंशपुराण - 48.31.6-7 तीर्थंकर नेमिनाथ से अपने को कृष्ण की मृत्यु का कारण जानकर यह जंगल में रहने लगा था । महापुराण 72.186, हरिवंशपुराण - 61.30 कृष्ण का मेरे द्वारा मरण न हो एतदर्थ इसने बारह वर्ष जंगल में बिताये थे ।
द्वारिका के जलने पर कृष्ण और बलदेव द्वारिका छोड़ दक्षिण दिशा की ओर चले आये थे । हरिवंशपुराण - 61.90 घूमते हुए वे उस वन में जा पंहुचे जहाँ यह विद्यमान था । कृष्ण को प्यास से व्याकुलित देखकर बलदेव पानी लेने के लिए गया हुआ था । इधर कृष्ण बायें घुटने पर दायां पैर रखकर वृक्ष की छाया में सोये थे । कृष्ण के हिलते हुए वस्त्र को मृग का कान समझकर इसने तीक्ष्ण बाण से कृष्ण का पैर बेध दिया । निकट आने पर जब इसे पता चला कि वे तो कृष्ण है वह उनके चरणों में आ गिरा और बहुत विलाप किया । कृष्ण ने बड़े भाई बलराम के क्रोध का संकेत देकर कौस्तुभमणि देते हुए इसे शीघ्र वहाँ से पांडवों के पास जाने के लिए कह दिया । यह भी उनके पैर से बाण निकालकर चला आया । कृष्ण का मरण उसी बाण के घाव से हुआ ।
हरिवंशपुराण 62 14-61 इसके पश्चात् कृष्ण की आज्ञानुसार इसने भील के वेष में कृष्ण के दूत के रूप में पांडवों से भेंट की तथा कृष्ण-मरण का समाचार सुनाते हुए प्रतीति के लिए कौस्तुभमणि दिखाया । पांडवों ने द्वारिका को पुन: बसाया और इसे वहाँ का राजा बनाया तथा अनेक राजकन्याओं के साथ इनका विवाह किया । हरिवंशपुराण - 63.45-76 कलिंग राजा की पुत्री इसकी पटरानी थी । इससे उत्पन्न वसुध्वज नामक पुत्र को राज्य सौंप कर यह दीक्षित हो गया। कृष्ण के दाहसंस्कार के बाद बलदेव तथा पांडव दीक्षित हुए ।
हरिवंशपुराण - 66.2-3 इस प्रकार द्वारावती नगरी में तीर्थंकर नेमिनाथ ने जैसा कहा था कि― ‘‘द्वारावती जलेगी, कौशांबी वन में इसके द्वारा श्रीकृष्ण की मृत्यु होगी, बलदेव संयम धारण करेंगे’’ सब वैसा ही हुआ । संयोग की बात है कि भाई ही अपने स्नेही भाई का हंता हुआ ।
हरिवंशपुराण - 1.120, 52.16 इसका अपरनाम जारसेय-जरा का पुत्र था । पांडवपुराण 23.2-3