देशभूषण: Difference between revisions
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पद्मपुराण/39/ श्लोक
वंशधर पर्वत पर ध्यानारूढ थे (33)। पूर्व वैर से अग्निप्रभ नाम देव ने घोर उपसर्ग किया (15), जो कि वनवासी राम के आने पर दूर हुआ (73)। तदनंतर इनको केवलज्ञान हो गया (75)।
पुराणकोष से
सिद्धार्थ नगर के राजा क्षेमंकर और उसको रानी विमला का पुत्र, कुलभूषण का अग्रज । इन दोनों भाइयों ने सागरसेन विद्वान् से शिक्षा प्राप्त की थी । इन्होंने झरोखे में बैठी एक कन्या देखकर उसका समागम प्राप्त करने के लिए परस्पर में एक दूसरे का वध करने का निश्चय कर लिया था किंतु बंदी के मुख से उस कन्या को अपनी बहिन जानकर पश्चात्ताप पूर्वक ये दोनों भाई दीक्षित हो गये थे । इनके वियोग से राजा क्षेमंकर शोकाग्नि से दग्ध हो गया और समस्त आहार छोड़कर मृत्यु को प्राप्त हुआ । इधर इन्होंने आकाशगामिनी ऋद्धि प्राप्त करके नाना तीर्थक्षेत्रों में विहार किया । तप में लीन होने पर सर्प और बिच्छुओं को राम ने इनके शरीर से हटाया था तथा निर्झर-जल से पैर-धोकर सीता ने फूलों से इनकी पादअर्चा की थी । राम ने ही अग्निप्रभ द्वारा किये गये उपद्रवों को शांत किया था । उपसर्ग के दूर होते ही इन्हें केवलज्ञान हुआ और देवों ने इनकी पूजा की । भरत इन्हीं से अपने भवांतर ज्ञातकर दीक्षित हुए थे । पद्मपुराण - 39.39-45,73-79, 39.158-175, 61.16-18, 86.1-9