द्वादश-गण: Difference between revisions
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<p> द्वादश सभा-तीर्थंकर के समवसरण में उनकी गंधकुटी को चारों ओर से घेरे हुए बारह सभा-कोष्ठ । इनमें क्रमश: गणधर आदि मुनि, कल्पवासिनी-देवियाँ, आर्यिकाएँ और स्त्रियाँ, भवनवासिनीदेवियाँ, व्यंतरिणी-देवियाँ, ज्योतिष्क देवियां, भवनवासी-देव, व्यंतरदेव, ज्योतिष्क-देव, कल्पवासी-देव, मनुष्य और तिर्यंच बैठते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 23.193-194, 48-49, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.66, 42.43 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> द्वादश सभा-तीर्थंकर के समवसरण में उनकी गंधकुटी को चारों ओर से घेरे हुए बारह सभा-कोष्ठ । इनमें क्रमश: गणधर आदि मुनि, कल्पवासिनी-देवियाँ, आर्यिकाएँ और स्त्रियाँ, भवनवासिनीदेवियाँ, व्यंतरिणी-देवियाँ, ज्योतिष्क देवियां, भवनवासी-देव, व्यंतरदेव, ज्योतिष्क-देव, कल्पवासी-देव, मनुष्य और तिर्यंच बैठते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 23.193-194, 48-49, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#66|हरिवंशपुराण - 2.66]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#42|हरिवंशपुराण - 2.42]].43 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
द्वादश सभा-तीर्थंकर के समवसरण में उनकी गंधकुटी को चारों ओर से घेरे हुए बारह सभा-कोष्ठ । इनमें क्रमश: गणधर आदि मुनि, कल्पवासिनी-देवियाँ, आर्यिकाएँ और स्त्रियाँ, भवनवासिनीदेवियाँ, व्यंतरिणी-देवियाँ, ज्योतिष्क देवियां, भवनवासी-देव, व्यंतरदेव, ज्योतिष्क-देव, कल्पवासी-देव, मनुष्य और तिर्यंच बैठते हैं । महापुराण 23.193-194, 48-49, हरिवंशपुराण - 2.66,हरिवंशपुराण - 2.42.43