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<p> किष्कुप्रमोद नगर का राजा एक विद्याधर । यह सूर्यरज के छोटे भाई और सुग्रीव के चाचा ऋक्षरज और उसकी हरिकांता रानी का पुत्र तथा नील का अग्रज था । इसने हरिमालिनी अपनी पुत्री हनुमान् को दी थी, राम-लक्ष्मण के साथ सिद्धशिला के दर्शन किये थे और अपने भाई के साथ राम की सहायता की थी । इसी ने बेलन्वर नगर के स्वामी समुद्र विद्याधर को बाहुबल से बाँधा था तथा राम का आज्ञाकारी होने से उसे सम्मान पूर्वक | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> किष्कुप्रमोद नगर का राजा एक विद्याधर । यह सूर्यरज के छोटे भाई और सुग्रीव के चाचा ऋक्षरज और उसकी हरिकांता रानी का पुत्र तथा नील का अग्रज था । इसने हरिमालिनी अपनी पुत्री हनुमान् को दी थी, राम-लक्ष्मण के साथ सिद्धशिला के दर्शन किये थे और अपने भाई के साथ राम की सहायता की थी । इसी ने बेलन्वर नगर के स्वामी समुद्र विद्याधर को बाहुबल से बाँधा था तथा राम का आज्ञाकारी होने से उसे सम्मान पूर्वक छोड़ते हुए उसी नगर का राजा बना दिया था । इसने युद्ध में रावण के मंत्री हस्त को रथ रहित करके उसे विह्वल कर दिया था । लंका विजय के पश्चात् इसने राम से किष्किंधपुर का राज्य प्राप्त किया । कुछ समय तक राज्य का भोग करके यह दीक्षित हो गया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#13|पद्मपुराण - 9.13]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#19|पद्मपुराण - 9.19]].104, 48. 189-195, 54.34-36, 65-67, 58.45, 59.17, 88.40, 11.939 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
(पद्मपुराण/9/13 व 119/39) सुग्रीव के चचा ऋक्षरज का पुत्र था।13। अंत में दीक्षित हो गया था।39।
पुराणकोष से
किष्कुप्रमोद नगर का राजा एक विद्याधर । यह सूर्यरज के छोटे भाई और सुग्रीव के चाचा ऋक्षरज और उसकी हरिकांता रानी का पुत्र तथा नील का अग्रज था । इसने हरिमालिनी अपनी पुत्री हनुमान् को दी थी, राम-लक्ष्मण के साथ सिद्धशिला के दर्शन किये थे और अपने भाई के साथ राम की सहायता की थी । इसी ने बेलन्वर नगर के स्वामी समुद्र विद्याधर को बाहुबल से बाँधा था तथा राम का आज्ञाकारी होने से उसे सम्मान पूर्वक छोड़ते हुए उसी नगर का राजा बना दिया था । इसने युद्ध में रावण के मंत्री हस्त को रथ रहित करके उसे विह्वल कर दिया था । लंका विजय के पश्चात् इसने राम से किष्किंधपुर का राज्य प्राप्त किया । कुछ समय तक राज्य का भोग करके यह दीक्षित हो गया । पद्मपुराण - 9.13,पद्मपुराण - 9.19.104, 48. 189-195, 54.34-36, 65-67, 58.45, 59.17, 88.40, 11.939