निर्वाणकल्याणक: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> तीर्थंकरों का निर्वाण-महोत्सव । चारों निकायों के | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> तीर्थंकरों का निर्वाण-महोत्सव । चारों निकायों के देवेंद्र अपने-अपने चिह्नों से तीर्थंकरों का निर्वाण ज्ञात करके अपने परिवार के साथ आते हैं और उनकी सोत्साह पूजा करते हैं । तीर्थंकरों की देह को निर्वाण का साधक मानकर उसे पालकी में विराजमान करते हैं और सुगंधित द्रव्यों से पूजकर उसे नमस्कार करते हैं । इसके पश्चात् अग्निकुमार देवों के मुकुट से उत्पन्न हुई अग्नि से उसे भस्म कर देते हैं । देव उस भस्म को निर्वाण का साधक मानकर अपने मस्तक, नेत्र, बाहु, हृदय और फिर सर्वांग में लगाते हैं तथा उस पवित्र भूमितल को निर्वाणक्षेत्र घोषित करते हैं । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.239-246 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: न]] | [[Category: न]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
तीर्थंकरों का निर्वाण-महोत्सव । चारों निकायों के देवेंद्र अपने-अपने चिह्नों से तीर्थंकरों का निर्वाण ज्ञात करके अपने परिवार के साथ आते हैं और उनकी सोत्साह पूजा करते हैं । तीर्थंकरों की देह को निर्वाण का साधक मानकर उसे पालकी में विराजमान करते हैं और सुगंधित द्रव्यों से पूजकर उसे नमस्कार करते हैं । इसके पश्चात् अग्निकुमार देवों के मुकुट से उत्पन्न हुई अग्नि से उसे भस्म कर देते हैं । देव उस भस्म को निर्वाण का साधक मानकर अपने मस्तक, नेत्र, बाहु, हृदय और फिर सर्वांग में लगाते हैं तथा उस पवित्र भूमितल को निर्वाणक्षेत्र घोषित करते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 19.239-246